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त्यो महाहियारो
समोसरणों में बग्दनारत जीवोंकी संस्था
जिन वंजणा पट्टा, पल्लासंन्नभाग - परिमाणा ।
चेट्ठति विविह जोबा, एक्केमके समवसरणेसु ं ।।६३८ ।
गाया : १३८ - १४१ ]
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कसमवाय त्यति माग प्रमाण विविध प्रकारके जीव जिनदेवकी वन्दना प्रवृत्त होते हुए स्थित रहते हैं ।।६३८||
अवगाहन शक्तिकी प्रतिशयता
कोटुश्मं खेत्तादो, जोगन वेत्तम्फलं होवून अट्ठति हैं. जिण
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असं
गुणं ।
माहव्येण से सम्बे ॥१३६॥
अर्थ :-- समवसरण के कोठोंके क्षेत्र मद्यपि जीवोंका क्षेत्रफल प्रसंख्यातगुणा है, तथापि वे सब जीव जिनेन्द्रदेव के माहात्म्यसे एक दूसरेसे पस्त रहते हैं ।।६३६ ॥
प्रवेशा- निर्गमन प्रमाण
संखेज्ज - जोयगाण, बाल प्यहुवी पवेस चिमणे । तोमुहल काले, जिण माहप्पेण
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क. ज. उ. य. माइट्ठीषया ।
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गच्छति ॥। ६४० ।।
अर्थ :- जिनेन्द्र भगवान्के माहात्म्यसे बालक प्रभूति जीव समवसरण में जीव प्रवेश करने अथवा निकलने में अन्त हर्तकाल के भीतर संख्यात योजन चले जाते हैं ।।६४०||
समवसरण में कौन नही जाते ?
मिच्छादट्टि -अभया से असम्मी न होंति कयादि ।
तह य अणभवसाया, संविद्धा विविह विवरीया ॥ ४१ ॥
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अर्थ :- समवसरण में मिथ्यादृष्टि भ्रमव्य और प्रसंत्री जीव कदापि नहीं होने तथा अनध्यवसाय से युक्त, सन्देहसे संयुक्त और विविध प्रकारको विपरीतताओं वाले जीव भी नहीं होते १९४९ ॥