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गाथा : ६०-६०३
उत्यो महाहियारो पहत्तरि-जा-ति-समा, पास-मिमिम्मि परिहत्ता में ।
पचुगीसोब' च सयं, मिजपबरे पोर - णाहम्मि ॥११॥ १०० | १७२५ | १६५० | १५७५ | १५५० १९२५ / १३५० / १२७५ | १२०० | ११२५/ १०३० | ५५५ ||२५|७३० । ६७५ / ६५० | ५३५ १४५०।२५५३५ |
१०५०
२२५५३७५ ७५ |
afr: :.. Maiter :- ऋषभ जिनेन्द्र के समक्सरणमें पन्धाकुटीकी ऊपाई नौ सौ धनुष प्रमाण पी। पश्चात् क्रमशः नेमिनाथ पर्यन्त चोचीससे विभक्त मुश्च (१००:२४-३७१ ) प्रमाण हीन होतो गई है। पावं मिनेन्द्र के पारसे विभक्त तोनसो पचतर धनुष भोर वीरजिनेन्द्र के एम्चीस कम सौ धनुष प्रमारण की ॥९००-९०१।।
सिंहासनानि माझे गंषउमेणं सपाव - पोढागि ।
वर • फलिह-निम्मिवाणि' घंटा - कासावि रम्माणि ।।६०२॥
पर्व :-गन्धमूटियोंके मध्य पादपीठ सहित, उत्तम स्फटिकमणियोंसे निर्मित एवं घण्टाओं के समूहाविझसे रमणीय सिंहासन होते है ।०२।।
[ तालिका : २५ अगले पृष्ठ २७६ पर देखिये ]
रयम-सचिवाणि साणि, जिगिद-उच्छह गोग्ग-उवयाणि । इत्वं तित्यपरागं, कहिगाई समवसरमाई 11t३॥
वि समवसरमा समता । १. द. परणयोससोस।। १. ५.१.क. भ. प. उ. गंधमरीण। 1. च.णिम्यवाणि ।