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________________ [ २७५ गाथा : ६०-६०३ उत्यो महाहियारो पहत्तरि-जा-ति-समा, पास-मिमिम्मि परिहत्ता में । पचुगीसोब' च सयं, मिजपबरे पोर - णाहम्मि ॥११॥ १०० | १७२५ | १६५० | १५७५ | १५५० १९२५ / १३५० / १२७५ | १२०० | ११२५/ १०३० | ५५५ ||२५|७३० । ६७५ / ६५० | ५३५ १४५०।२५५३५ | १०५० २२५५३७५ ७५ | afr: :.. Maiter :- ऋषभ जिनेन्द्र के समक्सरणमें पन्धाकुटीकी ऊपाई नौ सौ धनुष प्रमाण पी। पश्चात् क्रमशः नेमिनाथ पर्यन्त चोचीससे विभक्त मुश्च (१००:२४-३७१ ) प्रमाण हीन होतो गई है। पावं मिनेन्द्र के पारसे विभक्त तोनसो पचतर धनुष भोर वीरजिनेन्द्र के एम्चीस कम सौ धनुष प्रमारण की ॥९००-९०१।। सिंहासनानि माझे गंषउमेणं सपाव - पोढागि । वर • फलिह-निम्मिवाणि' घंटा - कासावि रम्माणि ।।६०२॥ पर्व :-गन्धमूटियोंके मध्य पादपीठ सहित, उत्तम स्फटिकमणियोंसे निर्मित एवं घण्टाओं के समूहाविझसे रमणीय सिंहासन होते है ।०२।। [ तालिका : २५ अगले पृष्ठ २७६ पर देखिये ] रयम-सचिवाणि साणि, जिगिद-उच्छह गोग्ग-उवयाणि । इत्वं तित्यपरागं, कहिगाई समवसरमाई 11t३॥ वि समवसरमा समता । १. द. परणयोससोस।। १. ५.१.क. भ. प. उ. गंधमरीण। 1. च.णिम्यवाणि ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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