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२१० सिलोयपणतो
। गाथा : ५३ विवाएं:-समोसरण के बारह कोठोंमें मशः कृषि (गणरादि), कल्पवासी देवियां, आयिकाएँ, प्राविकाएं, ज्योतिष देखियो, व्यन्तर देषियाँ, भवववासिनी देविया, भवनवासी देव, व्यन्तरदेव, ज्योतिषी देव, कल्पवासी देव, चक्रवर्ती मादि पुरुष तपा तिर्यचोंके बैठनेकी व्यवस्था रहती है । जिमेन्द्र भगवानको ये सब अपने-अपने कोठोंमें प्रविष्ठ होकर ही नमस्कार, वन्दना एवं स्तुति करते है। परन्तु सब कोठोंके प्रधान, प्रमुख गहा ( गणधर प्रमुख, कल्पवासी देवो प्रमुख, आर्यिका प्रमुख पादि-आदि)प्रपम पीठ पर चढ़कर तीन प्रदक्षिणा कर जिनेन्द्र भगवानकी पूजा-स्तुतिस्प कीर्तन द्वारा प्रसंगमात गुणधेरणीस्प निर्जरा करते हैं । भगवान महावीर समवसरण में यह गौरव ऋषियों में गौतमगराधरको, मापिकाओं में प्रायिका बन्वनाको, श्रावकों में राजा श्रेणिक को, पशुमोंमें सिंह को एवं मन्य-मन्य प्रमुखोंको अवस्म हो मिला है पौर गन्धकुटीको जिस प्रथम पीठ पर खड़े होकर मणघर देवादि ने स्तुति की है उसी पीठ पर मायिका, भाविका, देवियाँ बौर सिंहने भी पहुँच कर भक्ति-भाव पूर्वक स्तुति, बन्दनादि को है।
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[ तालिका : २४ पृष्ठ २६९ पर देखिये ]