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तिलोयपणती
सार्वक आई श्री पत्र-परिमाना कोसा, उजवीत हिवा व पासणाहम्मि । एक्को aिय छक्क हिदे देवे सिरिमाणम् ||८७७ ॥
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- पाव जिनेन्द्रके समवसरण में प्रथम पोठका विस्तार चौबीससे भाजित पांच कोस और वर्धमान जिनेन्द्र के समवसरण में बसे भाजिन एक कोस प्रमाण ही पा ||८७७ ||
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पोठों की परिषियोंका प्रमाण
पीढानं परिहीम, नियणिय-विस्वार-तिगुणिय-पाता ।
वर रयन मिम्मियाओं, अणुबम रमणिक्ज-सोहाणी ||८७८ ||
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१।४ | ५ | ६ 15 | 1 1 5
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[ गाया: ८७७-८०
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१९ | १७ | १७ | १६
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:-पीठोंको परिधियोंका प्रमाण अपने-अपने विस्तारसे सिगुणा होता है। ये पीठिकाएं उसम रनोंसे निर्मित एवं अनुपम रमणीय शोभासे सम्पन्न होती हैं ॥७८॥
धर्मच*
विविहन्यन-दव्य-मंगल-सुबेसु ।
बसयोजस पीछे सिर-धरिद सम्म चक्का, चेटु से वज-बिसासु जलवा ||८७६ ॥
:- चूड़ी सदृश गोल तथा नाना प्रकारके पूजा-द्रव्य एवं मंगल द्रव्यों सहित इन पीठों पर चारों दिशाओं में धर्म को सिर पर रखे हुए यक्षेन्द्र स्थित रहते हैं | | ८७६ ॥
मेवाका विस्तार
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चाबाणि वस्तहस्सा अट्ट हिबा पीव्र-मेहला दे जसह जिणे परमाहिय-दो-सप- कणाणि मेसि जि ॥१८८० ॥
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