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________________ २६६ ] तिलोयपणती सार्वक आई श्री पत्र-परिमाना कोसा, उजवीत हिवा व पासणाहम्मि । एक्को aिय छक्क हिदे देवे सिरिमाणम् ||८७७ ॥ ||ध - पाव जिनेन्द्रके समवसरण में प्रथम पोठका विस्तार चौबीससे भाजित पांच कोस और वर्धमान जिनेन्द्र के समवसरण में बसे भाजिन एक कोस प्रमाण ही पा ||८७७ || २४ २३ २२ ४ Y Y २१ Y - पोठों की परिषियोंका प्रमाण पीढानं परिहीम, नियणिय-विस्वार-तिगुणिय-पाता । वर रयन मिम्मियाओं, अणुबम रमणिक्ज-सोहाणी ||८७८ || · १।४ | ५ | ६ 15 | 1 1 5 Y २० | | ४ - - | [ गाया: ८७७-८० जी १९ | १७ | १७ | १६ * ४ ७ ४ 9 | } | ¥ | ¥ ४ ૪ | १५ | ४|४| tr * ¥ | ¥ | | १ | ४ | :-पीठोंको परिधियोंका प्रमाण अपने-अपने विस्तारसे सिगुणा होता है। ये पीठिकाएं उसम रनोंसे निर्मित एवं अनुपम रमणीय शोभासे सम्पन्न होती हैं ॥७८॥ धर्मच* विविहन्यन-दव्य-मंगल-सुबेसु । बसयोजस पीछे सिर-धरिद सम्म चक्का, चेटु से वज-बिसासु जलवा ||८७६ ॥ :- चूड़ी सदृश गोल तथा नाना प्रकारके पूजा-द्रव्य एवं मंगल द्रव्यों सहित इन पीठों पर चारों दिशाओं में धर्म को सिर पर रखे हुए यक्षेन्द्र स्थित रहते हैं | | ८७६ ॥ मेवाका विस्तार · । चाबाणि वस्तहस्सा अट्ट हिबा पीव्र-मेहला दे जसह जिणे परमाहिय-दो-सप- कणाणि मेसि जि ॥१८८० ॥ 4
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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