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गापा : ५१७-२०] पउत्यो महाहियारो
[ २४५ विशेषा:-समवसरणकी उपवन भूमिमें स्थित नापिकासोंके जमसे स्नान करने पर वर्तमान भवके आगे-पीछेकी बात जानते हैं और वापिकाभोंके नममें देखने पर तीन अतीतके, तीन भागी और एक वर्तमान का इसप्रकार सात भव देखते हैं।
मानस्तम्भका विवेचना' सालप्सय-परिअरिया', पोड-तय-उपरि मागधंभा य ।
पत्तारो चत्तारो, एकको चेत्त-हासम्मि ॥१७॥
प:-एक-एक चस्यवृक्ष प्रावित तीन कोटोंसे देहित एवं तीन पीठोंके ऊपर पार-बार मानस्तम्भ होते हैं ।।८१७॥
सहिबा वर-वावीहि, कमलप्पल-फमुर परिमलिल्लाहि । सुर-गर-मिहन- सएप इस पहिला-
महि Kari EFFES पर्य :-ये मानस्तम्भ कमल, उत्पल एवं कुमुदोंको सुगन्धसे युक्त तथा देव और मनुष्ययुगलोंके पारोरसे निकली हुई केशरके पसे पोत बलवाप्ती उत्तम वापिकाओं सहित होते हैं ।।१८।।
करच वि हम्मा रम्मा, कोरण-सालायो कत्व वि परामो ।
कस्प वि भय-साला, गलत सुरंपादना' १९॥
म:-वहाँ पर कहीं रमणीय भवन, कहीं उतम कोड़नपाला और कहीं नृत्य करती हई देवाङ्गनामोंसे पाकीर्ण नाटयशालाएँ होती है 11८१६।।
बहनुमो-मूसणया, सो पर-विविह-रमग-गिम्मविया । एवं पंति-कमे उबवण-भूमीसु सोहंति ।।२०।।
प्र:- बहुत भूमियों ( खण्डों ) से भूषित तमा उत्तम और नानाप्रकारके रस्नोंसे निर्मित ये सब भवन पंक्ति क्रमसे उपवनभूमियोंमें प्रोभायमान होते हैं ।।८२०॥
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१. ६. परिहरिमा। २. स. परिमलत्नाहि।
३. ब. मुरंगणापणा, क. स. सम्पति सुरगाणा