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त्यो महाहिया रो
[ २३९
कामं
चेत्य प्रासाद-भूमिको स्वीकार नहीं करते हैं। उनके उपदेशानुसार ऋषभदेवके समवसरण में लातिका भूमिका विस्तार एक योजन प्रमाण मा और शेय तीर्थकुरोंके समवसरण में क्रमश: हीन होन था |८०६ ॥
धूमोसालानं विरबारे हि खहिमवादयता कमोद जयाणि
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गाया : ८०-८०६ ]
:-कोई-कोई
२४१३३ ।
२२ | २१ | २० | १६ | १६ १७ | १६ | २४६२४ २४ २४२४२४
૨૪ ૨૪ ૨૨૪|
२४
:- धूलिसाल के विस्तार के साथ खातिका क्षेत्रका विस्तार क्रमशः इतने योजन रहता है। (तालिकामें देखिए )
तत्थ धूलीसानाणं कमलो मूल- विस्थारो --
r २३
૨૨ २१ २० १६ १५ १७ १६
१५.
*|2|3|2|3|*|*|~|~|~|~|| 23 202 | 2014 | 2012 | 2012 | 2014 | 2012 | 2014
૪ १३
२८८ २०८ २०० २००१ २०० २०० २६० २८८ २०८ २० २६० २०६
१० ફ્
७
६
५.
४
३ ५ ४
32-|21|38|260/200/200/280|23|220|20|205|201|
१२ २६८ २६० २६० २६० २५८ २८० २०८ २८८ २०८ २८६ ५७६ ५७६
अ :- क्रमशः धूलिसालका भूल विस्तार ( तालिकामें देखिए ) |
सग-सग धूलीसालाणं वित्वारेण विरहिदे सग-सग स्वाइय-बेतानं विस्या रो૨૬૪ ૨૨ ૨૪૨ ૨૪/૨૨૦/૨૦૨ ૧૨૬/૨૬૭ ૨૦૬ ૨૬ ૧૪| tera
२० २६० २६० २६० २६० २६० २६० २६० २६० २६० २६० २०६
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१३२ १२१ ११०
७७ ६६.
४४ ३३ ५५ ४४
२८६ २८० २६० २६६२६० २६० २६० २६० २०० २८०४७६५७६
। खाइयसेत्तारिए समत्ता ।
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पाठान्तरम् ।
अपने-अपने धुलिसालोंके विस्तारसे रहित अपने-अपने वातिका क्षेत्रोंका विस्तार । ( तालिकामें देखिए )
स्वातिका क्षेत्रका वर्णेन समाप्त हुआ ।