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________________ -- - - पापा । ७६७-६] पउत्पी महाहियारो [ २३५ म:-ये उपयुक्त उत्तम इह समचतुष्कोण, कमलादिकसे संयुक्त, रोलीगं और वेविका, भार तोरण एवं रस्लमालाओं से रमणीय होते हैं ॥१६॥ ARTV निशाना STATE बल-कोयन-बोर्गोह, संपु सिमराम्यहि ॥७॥ म;-सब द्रहोंके चारों तटों से प्रत्येक तटपर जलकीयाके योग्य दिम्य द्रमोंमे परिपूर्ण परिणममी सोपान होते हैं ।।७७॥ भावम-तर-बोरस-कप्पंवासी य कोयन-पयट्ठा । गर-किन्नर-मिनानं, कुंकुम पंकज पिजरिया ||७ect :-इन दहोंमें भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी पौर कल्पवासी देव औडामें प्रवृत्त होते है। ये वह नर एवं किधर-युगलोंके कुम-पडसे पीतवर्ग रहते है ॥७९८|| एकेक्क-कमल-संरे, मोहो गणि सिम्मल-बलाई। सुर-पर-तिरिया सेन, तो चरण-रेणूभो GEET । मारणस्वंभा समता। म: प्रत्येक कमलखण्ड अर्थात् बहके आषित निर्मल जलसे परिपूर्ण दो-धो कुम होते है, जिनमें देव, मनुष्य एवं तिपंच अपने पैरॉकी धूलिधोया करते हैं ॥७tell । मानस्तम्भोंका वर्णन समाप्त हुआ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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