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________________ HIRAJ.. and meहिलोमपणतो. [ गाचा : ७६२-७६६ :-सब समवसरणोंमें तीनों कमेटोंके बाहर बार-विशामोंमेंसे प्रत्येक दिशामें क्रममा पूर्वादिक वौषीके प्राषित दह ( वापिकाएं ) होते हैं ॥७६१॥ गंदुत्तर-णंदाओ, नपिई विषोस-गामाओ। पुष्पत्यमे पुग्णाविएस भागेस 'वचारो ॥७२॥ ब:-पूर्व दिशागत मानस्तम्भके पूर्वाधिक भागोंमें क्रमशः नन्दोत्तरा. नन्दा, नन्दिमती और मन्दियोषा नामक चार मह होते है ।।७६२॥ विजया य बाजयंसा, जयंत-अवराजिरा गामेहि । रक्सिण-मे पुम्बाविएस भागेसु पत्तारो ॥७३॥ पर्व:-दक्षिण दिशा स्थित मानस्तारके आश्रित पूर्वादिक भागोंमें क्रमश: विजया, बंजयन्ता, जयन्ता मोर पपराजिसा नामक पार वह होते हैं ॥७६३।। अभिहाणे य मसोगा, सुप्पाहावा' य कुमुर-पुरिया । पछिम-धमे पुवादिए सु भाए सु वतारो Heru w:-पश्चिम दिशागत मानस्तम्भके माश्रित पूर्वादिक भागोंमें क्रमान: अनोका, सुप्रतिबुढा ( सुप्रसिधा ) कुमुदा भौर पुण्डरीका नामक पार वह होते हैं ।।६।। हिण्य-महापंरामो, सम्पासा पहंकरा गामा । उत्तर-यमे पुम्दाविएस भाएस चारो ७६५|| प्रबं:-उत्तर दिशावर्ती मामस्तम्भके बाश्रित पूर्वादिक भागोमें करमा दयानन्दा, महामन्दा, सुप्रतिदुता और प्रभडूरा नामक चार वह होते हैं ।।७६५।। एवं सम-बउरस्सा, स्वर-वहा पजम-पहुदि-संकुला। टेकुस्किष्णा वेविय-बड़-तोरण-रयगमाल रमनिया ॥७६६। ।. प. य. सत्तारा। २. १. ३. ५. पं ...ब. क. ज. स. स. सुप्पानुशाक ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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