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[माथा : ७६०-७१२
तिलोयपरमातो [तदिय-पोसानं सरेकाणं ]
४।४।४।४।४।४।४।४।४|४|४|४|४|४|४|४|
४। ४ । ४ । ४१४ । ४ | |४| मोट: तीनों पीठोंकी सीरियों का प्रमाणा तालिकामें दर्शाया गया है।
पठमा मिदियाणं, विचार माणभ-पीता।
जाति जिदो ति य, उच्छिन्नो अम्ह उबएसो ॥७०।।
म: प्रम व द्वितीय भानस्तम्भ की विस्तारजिनेन्द्र हो जाता है। हमारे लिए तो इसका उपदेषा अब नष्ट हो चुका है 11७८०।।
रंश तिमि सहस्सा, तियनरिया तरिय-पोट-विरमारों। उसह-जिणिदेकमसो, पच-या-होगा यजावणेमि-वि॥७१||
३०००।२८७५/२७५०/२६२५/२५०० | २७४|२२५०।२१२५
२०३ । १८० | १७५० | १६२५ १५५० | १३ | १२५० | ११२४
१०००।१३५ / ७३० । ६२५/५६० / ३६५||
प्रपं:-ऋषभदेवके समक्सर में तृतीय पीठका विस्तार तीनसे भाजित तीन हजार पनुन प्रमाण या । इसके प्रागे मेमिजिनेन्द्र पर्यन्त क्रमशः उत्तरोत्तर पाँचका कम (१२५) जाम्पराभिसे कम होता गया है ॥७॥
पणवीसामिपन्छस्सय-णि पासम्मि खा-भजिवामि। पंचश पंच-सया, अ-हिबा वीरनाइस ७५शा
१९५५६०
प:-भगवान् पाश्वनाथके समक्सरणमें सृतीय पीठका विस्तार से भाषित छह सौ पञ्चोस धनुष भोर वीरनायके छहसे भाजित पांचसो धनुष प्रमाण पा ७५२।