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________________ २२८ ] [माथा : ७६०-७१२ तिलोयपरमातो [तदिय-पोसानं सरेकाणं ] ४।४।४।४।४।४।४।४।४|४|४|४|४|४|४|४| ४। ४ । ४ । ४१४ । ४ | |४| मोट: तीनों पीठोंकी सीरियों का प्रमाणा तालिकामें दर्शाया गया है। पठमा मिदियाणं, विचार माणभ-पीता। जाति जिदो ति य, उच्छिन्नो अम्ह उबएसो ॥७०।। म: प्रम व द्वितीय भानस्तम्भ की विस्तारजिनेन्द्र हो जाता है। हमारे लिए तो इसका उपदेषा अब नष्ट हो चुका है 11७८०।। रंश तिमि सहस्सा, तियनरिया तरिय-पोट-विरमारों। उसह-जिणिदेकमसो, पच-या-होगा यजावणेमि-वि॥७१|| ३०००।२८७५/२७५०/२६२५/२५०० | २७४|२२५०।२१२५ २०३ । १८० | १७५० | १६२५ १५५० | १३ | १२५० | ११२४ १०००।१३५ / ७३० । ६२५/५६० / ३६५|| प्रपं:-ऋषभदेवके समक्सर में तृतीय पीठका विस्तार तीनसे भाजित तीन हजार पनुन प्रमाण या । इसके प्रागे मेमिजिनेन्द्र पर्यन्त क्रमशः उत्तरोत्तर पाँचका कम (१२५) जाम्पराभिसे कम होता गया है ॥७॥ पणवीसामिपन्छस्सय-णि पासम्मि खा-भजिवामि। पंचश पंच-सया, अ-हिबा वीरनाइस ७५शा १९५५६० प:-भगवान् पाश्वनाथके समक्सरणमें सृतीय पीठका विस्तार से भाषित छह सौ पञ्चोस धनुष भोर वीरनायके छहसे भाजित पांचसो धनुष प्रमाण पा ७५२।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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