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तिलोत्त
[ गाया : ७६८
:- प्रत्येक नाटयशाला में चारसे गुणित आठ ( ३२ ) रङ्गभूमियाँ और प्रत्येक रङ्गभूमिमें बत्तीस भवनवासी-कन्यायें अभिनयपूर्वक नृत्य करती हुई मानाप्रकारके अर्थोंसे युक्त दिव्य गीतों द्वारा तीर्थसुरोंकी विजयके गीत गाती हैं और पुष्पाञ्जसियोंका परण करती है ।।७६६-७६७।।
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'एक्केक्काए नट्टय-सालाए वोणि दोन्धि भूब-वडाः । पसरे बासिय दिगंता ॥७६६ ।।
गाना - सुगंधि-धूवं
"
1 रायसाला समता ।
वर्ष :- प्रत्येक नाटयशालामें नानाप्रकारकी सुगन्धित धूपोंस दिल- मण्डलको सुवासिता कार्यक आर्य श्री विधिसागर जी ह करने वाले दो-दो धूप घट रहते हैं ।।७६८ ।।
नाटयशालाभों का वर्णन समाप्त हुआ ।
सालिका नं० १७ पृष्ठ २२३ पर देखें ]
1. पं. स. उ. एकेमार्ग, अ एक्केमकारिण ।