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साया : ५५१-६१४ ०५:-मस्ति जिनेन्द्रने राज्य नहीं किया । मुनिसुवत भौर नभिनाषका राज्यकास कपणा पन्द्रह हजार और पांच हजार वर्ष प्रमाण था । नेमिनाथ, पावनाष भोर पोर प्रभुमें राज्य नहीं किया ।।६१०॥
ऋपनादि चोवीस तीर्थंकरोंके बिहरिसहावीणं चिण्ह, गोपदिलाय-तुरय-बागरा कोका । पउने गंदावतं. अदससि-मयर-सपिया पि ॥६११।। गई महिस-पराहा', 'साहो-बग्माणि हरिग-रागला' या तगरकुसुमा य कलसा, कुम्मुष्पल-संख-अहि-सिंहा ॥१२॥
म:-बैल, गज, पश्व, बन्दर, चकवा, कमल, नन्यावर्त, अपरन्द्र, मगर, स्वस्तिक, गेंडा, भंसा, शूकर, सेहो. यय, हरिण, बाग, तगरकुसुम । मस्य), कलश, पूर्म, उत्पल (नीलकमल), शंख, सर्प मौर सिंह ये क्रमशः ऋषमादिक चौवीस सोपंपरोंके चिह्न है॥६५१-६१२॥
मोट:-गापा ५१० से ६१२ पर्यम्तकी मूलसंदृष्टियोंक भर्य तालिका मं० १३ द्वारा स्पष्ट किये गये हैं, जो पृष्ठ १७४-१७५ पर देखें।
राज्य पद निर्देशअर-प-संक्ति-गामा, तिस्पयरा चाकट्रिनो भूरा ।
सेसा अनुगम-भुजबल-साहिय-रिपु मंडला बारा ॥१३॥
अर्थ :--अरनाप, कुन्धुनाथ और मान्तिनाप नामके तीन तीर चक्रवर्ती हुए थे। मेष सीदर अपने भनुपम बाहुबलसे रिपु वर्गको सिद्ध करनेवाले ( माण्डलिक राजा ) हुए ॥१३॥
पाँचीसों तीथंकरोंको वैराग्य उत्तिका कारण - संसि-मुग-वासुपुमा, सुमइ-बुगं 'सुमारावि-पंच-जिणा । णिव-पच्छिम-अम्मान, उपभोगा' जाप-वेरणा ॥६१४॥
१ .राहो। २. ...क..य, . सीहा। ५. द.व.क.प. उ. तबरा। ... 4.क.अ. य. उ. मष्ट्रिय।।.. रिसमसमा, .. च विपंडापा, अ.व. रिमंडमा, क. बमंजमा । १. ब. उ. सुबुक । ., क. उपरण।