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________________ माया : ५५८-५५६ ] पउत्पो महाहियारो [ १७ पौबीस तीर्थरोंकी भक्ति करनेका फल दवज्जाएरे जिगिरे भरहम्मि सेंसे, भष्वाण पुणेहि कवावतारे। काए ण पाचा मणसा समंता, सोफ्लाइ मोक्लाइ सहति मम्बा ॥५५॥ प्रयं:-मध्य-जीवों के पुण्योदयसे भरतक्षेत्रमै अवतीर्ण हुए इन चौबीस तोपंडूरोंको जो अन्यजीजा मत जनन-कायुमें जारस्कार करते मोक्षसुख पाते हैं ।।५५८।। घोडक'- ( दोधक वृत्तम् ) केवलगाण - बगरफद - को, तिस्पयरे बरबोस - जिगिरे। जो महिणंवा भत्ति - पयस्तो, बम्झइ सस्स पुरंदर - पट्ठो ॥५५॥ प्र:--भक्ति में प्रवृत्त होकर जो कोई भी केवसमानरूप वनस्पतिके कन्द और तोके प्रवर्तक चौबीस तोवरोंका अभिनन्दन करता है उसके इन्द्रका पट्ट बंधता है ॥४५६।। [ तालिका नं. १२ पृष्ठ १५-१५६ पर देखें ] १. [ बोधकम् ] । २. इ. बणप्पा, ज. प. बप्पा। शिदो।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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