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तिलोयपम्पत्ती
[ गाथा : ५२५-५२८ :-(भरतक्षेत्रमें ) विजय, भरल, मुधर्म, सुप्रभ, सुदर्शन, नन्दी, नन्दिमित्र, राम पोर पर ये नो बलदेव हुए है ।।५२४।।।
नारायणोंके नामतह म सिस्टि-पिटा. सथंभू पुरिसुत्तमो पुरिसलीहो ।
पुंडरिय'-बस-गारापणा य किन्हो हति गव विष्ट्र ॥४२५॥
प:-तचा त्रिपृष्ठ, दिपृष्ठ, स्वयम्भू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुखरीक, दत्त, नारायण ( लक्ष्मण ) बौर कृष्ण ये नो विष्णु ( नारायण ) हैं ॥५२५।
प्रनिमारायणोंके नाम
मस्सग्गोवो सब का मधुकोशातही
AATHA बलि-पहरण-रापना य, जरसंषो भव व परिसतू ।।५२६॥
:-अश्वप्रीव, तारक, मेरक, मधुकैटभ, निशुम्भ, वलि, प्रहरण, रावण मोर जरासंध, ये नो प्रतिक्षत्र (प्रतिनारायन) है ॥२६॥
रुदोंके नाम
भीमावलि-बियसत्तू, हो 'पहसाणलो यसपाटो । तह अयस पुरीमो, अजियंधर अभियनाभि-पेवासा ॥२७॥ समासने एवे. एकारस होति तिस्पयर-काले ।
बहा रसह-सम्मा, महम्म-बाबार-संलागा ॥२८॥
प:-तीर्थकर कालमें भीमावलि, जितछा, ख, विश्वानल, मुप्रतिष्ठ, प्रचन, पुण्डरीक, अजिसन्धर, अजितनाभि, पीठ और सात्यकित ये पारह रुद्र होते हैं। ये सब अधर्मपूर्ण व्यापार संलग्न होकर रौद्रकर्म किया करते हैं ॥५२७-५२८।।
२. ... क. ३. अशागतो।
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, न.
१. क.अ. ... पुरीय। सुपादता ।