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गामा : ४८०-४५३] पजत्यो महाहियारो
[ १३६ प :- रात्रि चन्दमण्डल दिखाकर और खिलायन करके उन्हें वनोपदेश ( बोलना ) सिचामो तपा यल (पूर्वक उनका रक्षण) करो ॥४७६।।
सोऊषं उवएस, भोकशाह-कालिस र PRE
अग्थ्यि पोष-विणाई, पासीणा: गिलोयंति ॥४॥
पर्व:-यह उपदेश सुनकर भोगभूमिझ मनुष्य शिशुपोंक माम वसा हो व्यवहार करते। है। वे ( युगल ) पोडे दिन रह कर आयुके सीण होने पर विसोन हो जाते हैं IMeall
उपयुक्त पांच फुलकरोंकी दण्ड व्यवस्था'लोहेणाभिहदाणं, सोमंधर • पहुद - कुसकरा पंच ।
तानं सिक्सम-हे, हा - मा. कारं कुषति 'वडत्य ॥४८॥
मर्च :-सीमन्धरादिक पांच कुलकर मोभमे आक्रान्न उन युगलों के शिक्षण हेतु दाहके लिये हा (खेद सूचक ) और मा ( निषेध सूचक ) शब्दोंका उपयोग करते हैं ॥४ ॥
चन्द्राभ मनुका निरूपणअहिरे तिपिव-गरे, बस -'धन-हब-अट्ट-कोरि-हिए-पल्ले । अंतरि चंगहो, एककारसमो हदि मनू ॥४॥
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प्र:-अभिवन्द्र कुलकरका स्वर्गारोहण हो जाने पर दसके पन ( १०० ) से गुणित पाठ फरोह (माठ फरोड़ १००० 1 से भाजित पत्य प्रमाण पतरालके पश्चात् पन्द्राम नामक ग्यारहवा मनु उत्पन्न होता है ।1४०२||
बासय सुम्यहो, वर-चामोयर-सरिच्छ-तनु-वण्यो । वस-कोटि - सहस्सेहि 'भाजिव - पल्ल - पमाणाक ।।४८३॥
१. द. म.क.ब.प. च. नोभेएभिपदाणं। २. १. या। * विसोकसार मा. ५९के भाधार पर मेप कुलकरोंके समय -मा-बिकशी व्यवस्था पौ। ३. १. *. . ब. न, वसपुणहर । ४. .. मेरी। २. 4. क, म. म. न. मनिदे।