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तिलोपाती
ते सब्बे पर जुगला, प्रोगुप्पण्ण
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पेन संमूढा' ।
जम्हा लम्हा ते सावध - वय संगमो नपि ॥ ३६० ॥
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अर्थ :- वे सब उत्तम युगल पारस्परिक प्रेम अत्यन्त मुग्ध रहा करते हैं, इसलिए उनके कोचित व्रत-संयम नहीं होते || ३६० ॥ 1
कोइल - महरामाया किन्नर कंठा हवंति से जुगला ।
कुल जादि भेद होना, सुहसचा खत - दारिद्दा ॥३६२॥
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:- वे नर-नारी युगल, कोयस सदृश मधुरभाषी, किन्नर सदृश कण्ठ वाले, कुल एवं
जातिभेदसे रहित, सुखमें प्रासक्त और दारिद्रय रहित होते हैं ||३९३॥
भोगभूमिज तियंचोका वर्णन ---
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तिरिया भोगबिबीए, जुगला जुगला हवंति वर-वण्णा । सरला मंदसाया णाभाविह जादि संजुला ॥३६२॥
पादर्शक :.
श्री सुि
सर्व :- भोगभूमिमें उत्तम वर्ण-विशिष्ट, सरल, सन्य-कषायी और नाना प्रकारको जातियों काले तियंच जीव युगल मुगल रूपसे होते हैं ।।३६२॥
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गो-केसरि-करि-मयरा-स्वर-सारंग शेभ महिल-क्या । सिगालच्छ भल्ला य ॥ १६३॥
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४. ब. क. य. उ. जिक, व. fears, प
[ गाया : ३६०-३६५
वायर-गयय-सरच्छा
कुक्कुड कोइल फोरा, पारावर रायहंस कारंडा ब्रेक-कोक-कच-किंजक पहूवीओ होंति अच्छे बि ।। ३६४ ॥
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१. व.ब.क.ज.ज. अंगूठा य. संगण २.ब.उ.सं
अर्थ :- (भोगभूमिमें ) गाय, सिंह, हाथी, मगर, शुकर, सारङ्ग रोझ (ऋ), मेस, बुक ( भेड़िया ), जन्दर, गवय, तेंदुआ, व्याघ्र, श्रृंगाल, रीख, भालू, मुर्गा, कोयल, तोता, कबूतर, राजहंस, कारंड, बगुला, कोक ( चकवा ) क्रौंच एवं किमक तथा और भी तियंच्च होते है ।। ३६३-१६४।।
यह मनुवाणं भोगा तह तिरियानं
हवंति एवानं । निय जिय जोग्गलेणं, फल कंड लगेकुरावीनि ॥ ३६५॥
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३. ब.उ. सिवालस्ट के सिंगाज