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१६ ] तिलोयपाती
[ गाथा : ३१४ पिद्विय सवनंतर-सि पुरिरासि कावून एय- सलामं पिय एपपुषं विरसियूमा '
एकस सम्म उप्पाच-राति पादून। अन्योन्जाम कावून सलाय रासियो एपक्व अबाव्वं । एरेण सरूपेण विडिय-सलाय- समत्त ।।
प्र:- उस राशिकी समाप्तिके अनन्तर उत्पन्न हुई राशिकी दो प्रतिराशियां करें। उनमेंसे एक पुंज शलाका रूपसे स्थापित कर मोर एक पुजका विरलन कर, एक-एक अंकके प्रति उत्पत्र ( हुई ) राशिको देय देकर परस्पर गुणा करनेके पश्चान् पालाका राशिमेंसे एक अंक कम करना चाहिए । इस प्रक्रियासे द्वितीय शलाका राशि समाप्त हो गई।
___ समत्तकाते उप्पण-रासि दुप्परि-रासि कापूस एयपुत्र सलाय रुपिय एप निधिसून एक्स्ट्रा लारण अल-हासिपमा हावूण मणोजम्मस्पं कारण ससायरासीदो 'एयरूर्व अवणेदकं । एवंण कमेण सपिय कमिद्विवं ।।
मपं:-(द्वितीय शुसाका राशिके ) समाप्ति कालमें उत्पन्न राशिको दो प्रतिराशियाँ करें। उनमेंसे एक पुज शलाका रूप स्थापित करें और एक पुश्यको विरलित कर एक-एक अंक प्रति उत्पन्न राशिको देय देकर परस्पर मुसा करने के पश्चात पालाका-राशिमेंसे एक अंक कम कर देना चाहिए । इस क्रमसे तृतीय पुंज समाप्त हो गया।
एवं कई उकास-असंखजासखेज्जयं न पावि । पम्माषम्म लोगागास एगीय परसा । बत्तारि बि लोगागास-मेता, पसँग सरीर-चावर-परिष्टिया एवं रोपि किंवून सापरोपमं विरलीग बिमंगरावून अमोनाभित्वं कई रासि-पमाणं होरि । चप्पे' असंतोजरासीमो पुबिल्ल रासिम्स उरि पक्लिदिखूण पुग्ध - सिणिवारबग्गिन-संबगिये करे उपकरस-असंखग्यासंजय ग उपजारि ।
:-ऐसा करनेपर भी उत्कृष्ट असंख्याता संख्यात प्राप्त नहीं होता। (असंख्यात प्रदेशी) (१) धर्मद्रव्य, (२) अधमंतण्य (३) लोकाकाश और (४एक जीव, इन चारोंके प्रदेश लोकाफाश प्रमाण है । तया (५) प्रत्येक शरीर ( अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति स्वरूप यह जीव राषि एक जीवके प्रदेशोंसे मसक्यात गुणी है ) और (६) नादर प्रतिष्ठित, ( प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति स्वरूप यह
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- ... .--. -- १... ज. उ, एकोम्स । २. प. प. एमपस । ३. ५. 4. क... उ. को। ४. क... सोयगाता। ५. क. ज. स. पदिद्विये। ... ब. क. प. उ. पति पदे। ७.. . मसंज्जासोउजदी।