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गाथा : ३१४ ]
महाद्दियारो
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मार्शिक :शर्षाख्या है उसका विरलन कर एक-एक अंक पर ( वही ) जघन्यपरीतासंभ्रमात देय देकर परस्पर गुणा करनेसे उत्कृष्ट परीता संख्यातका उल्लंघनकर जघन्ययुक्तासंख्यात प्राप्त होता है । ( जो आवली मश है। ) अर्थात् आवलीके समय जघन्य युक्तासंख्यात प्रमाण हैं ) ।
जहाँ-जहाँ एक आवलीका अधिकार हो वहाँ वहाँ जघन्य युक्तासंख्यात ग्रहण करना
चाहिए ।
जं तंज- शुतासंज्जयं तं सयं वग्गिदो उक्करस- जुस । संखेज्जयं 'अविच्ि जहन्नम संसंज्जासंसंज्जयं गंतॄण पडिदं । तो एग-रूप-प्रबरती जायं उक्करस- जुत्तासंज्जयं ।
अर्थ: जो यह जघन्य युक्तासंख्यात है, उसका एक बार वर्ग करने पर उत्कृष्ट युक्तासंख्यातका उल्लंघनकर जघन्य असख्यानासंख्यान प्राप्त होता है। इसमेंसे एक अंक कम कर देनेसे उत्कृष्ट-मुक्तासंख्यात प्राप्त होना है।
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तवा जनसंखेज्जासंखेवमयं दोपहि-रासि काढूण एग-सि-सलाय े मार्ग ठविष एग रासि विरसेगुण' एक्केक्कल्स' रुबस्स एग-पुंज-पमानं" बाण अष्णोष्णभत्त्वं करिय सलाम रासिदो एग-रूपं 'अवनेवध्वं । पुणो वि उप्पण्ण रासि बिरलेकूण एक्क्कल्स ऋषस्स तमेव उप्पन्तारासि वाण अन्नोनाग्भत्वं कापूण सलाय - शसिवो 'एगस्यमयव्यं । एडेन कमेन सलाम-रासी गिट्टिया ।
:- इसके बाद जघन्य असंख्यातासंख्यातको यो प्रतिधियां कर उनमेंसे एक राशिको शलाका प्रमारण स्थापित करके और एक राशिका विरलन करके एक-एक अंकके प्रति एक-एक पुष्ञ प्रमाण देकर परस्पर गुणा करके शलाका सशिमेंसे एक अंक कम कर देना चाहिए। इसप्रकार जो राशि उत्पन्न हो उसको पुनः विरचित कर एक-एक अंकके प्रति उसी उत्पन्न राशिको देय देकर और परस्पर गुणा करके शलाका राशिमेंसे एक अंक और कम कर देना चाहिए। इसी क्रम से शलाका राशि समाप्त हो गई।
१. क. उ. पचिणि ज. घधिन्छे । २ द. समाधममाण, म.उ. समाया सरणाम,
लो
बदन | ५. क. ज. य. उ. सम्मा
। ४. क. ज. प. उ एमके क.अ. उत्तप्प
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क्र. ज. सभापासभारण । ३.
६. क. ज. स. वणोदयं ।
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