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तिलोमपम्पत्ती
[ गापा : १३ प:-पृथक-पृथक इकतीस ( ३१) स्थानों में चौरासी (८४ ) को रखकर और उनका परस्पर गुणा करके मागे नब्बे शून्य रखमेपर 'मबलात्म' का प्रमाण प्राप्त होता है ।।१२।।
शिपाय:-४५४६. शून्यम्मरलारम नामक कालापा । अपत्ति १५० अंक प्रमाण बोंका एक अवसारम होता है ।
एवं 'एसो कालो, संजो बच्छराण गणाए ।
उपस्करसं संखेच, 'जाम तापं 'पदसओ ॥३१३॥
ब:- इसप्रकार वर्षों की गणना द्वारा जहाँ तक उत्कृष्ट संन्यात प्राप्त हो वहाँ तक इस संख्यात कालको ले जाना पाहिए अर्थात् ग्रहण करना चाहिए ।।३१३ ।। वयपारदर्शक :...
ETAHATE X XX एत्व उनकस्स-संखेन्जय जाण-निमित्त जंबूदोष-वित्पारं सहस्सजोपण अश्वेष* - पमाणं च चत्तारि -सराण्या' कारण। · सलागा परिसलागा महासलागा एवं सिणि वि अष्ट्रिया'
बजत्यो "अमर्यादिदो। एदे सके पश्चाए ठविता ।
भ:-यहाँ उत्कृष्ट संक्यात बाननेके निमित्त जम्मूदीप सदृशा ( एक लास योजन ) विस्तारवाले और एक हजार योजन प्रमाण गहरे पार गड्ढे करने चाहिए। इनमें शलाका, प्रतिशलाका एवं महाशलाका ये तीन पद अवस्थित तथा पोषा गड्डा अनवस्थित है। ये सब गड्ढे बुद्धिसे स्थापित किए गए हैं।
एस्थ उत्प-सरावय-अग्भंतरे कुवे सरिसबे युवे सं जहां संखेम्जवं माद। एवं पाम-वियर्ष । तिष्णि सरिसवे 'कुर अग्रहम्पमकरस-संस्ममं । एवं सराबए" पुग्ने" एवमुरि मज्झिम-विषप्पं ।
१.व. एवं सौं। २. ...... य.च. आवतो .., पाबत . प. परतो । . ..... संखेजय। ५. 4. 1.क.ब. य. स. ॥ ६.. ब. क. ब. प. है. सरासर । ..क.क. ३. अद्वियो। ८.क. ३... भगवाददा। ९. . ब. मुरे। १०.६. क. भ. प. . धारापो। ११. द. ग. क. ब. प. ३. पुम्यो ।