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यहाँ ३-३८९, d=८ और n=४ है, . : चौथे पायड़े में श्रेणीबद्ध बिलों की संख्या {३८९-(४-१)८}=३६५ होती है। गाथा २/५९
ग्रन्थकार ने n वें पाथड़े में इन्द्रक सहित धोरिणबद्ध बिलों की संख्या निकालने के लिये सूत्र दिया है : इष्ट पाथड़े में इन्द्रक सहित श्रेणीबद्ध बिलों की संख्या=
(५+१-n)s+५
गाथा २१६० : यदि प्रथम पाथड़े में इन्द्रक सहित श्रेणिबद्ध बिलों की संख्या और बें पाथड़े में a 1 मान ली जाये तो । का मान निकालने के लिए सूत्र निम्नलिखित है
॥ = [ ]
गाथा २/६१ : श्रेणी व्यवहार गणित में, किसी श्रेणी में प्रथम स्थान में जो प्रमाण रहता है उसे आदि, मुख ( बदन) अथवा प्रभव कहते हैं । अनेक स्थानों में समान रूप से होने वाली वृद्धि या हानि के प्रमाण को चय या उत्तर कहते हैं । ऐसी वृद्धि हानि वाले स्थानों को गच्छ या पद कहते हैं । उपरोक्त को क्रमश: first term, Common difference, number of terms कहते हैं।
गाथा २/६४ : संकलित धन को निकालने के लिए मूत्र दिया गया है।
मान लो कुल धन ऽ हो, प्रथमपद । हो, चय d हो, गच्छ । हो तो सूत्र इच्छित घोढि में संकलित धन को प्राप्त कराता है:
s= [ {n-इच्छा )d+ (इच्छा-१)d + (३.२)] इच्छा का मान १. २ आदि हो सकता है । गाथा २/६५ : इसी प्रकार संकलित धन निकालने का दूसरा सूत्र इस प्रकार है :
___s= [{ (-) (-)} d+५]
यह समीकरण उपरोक्त सभी श्रेणियों के लिये साधारण है।
उपयुक्त में संख्या ५ महातमः प्रभा के बिलों से सम्बन्धित होना चाहिए। ५ को अंतिम पद माना जा सकता है ।