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तिलोयपपणती
[ गाथा : १६२
भवनवासी-इन्द्रोंकी ( सपरिवार)
इन्द्रोंके नाम
दक्षिणेन्द्र उत्तरेन्द्र
उत्कृष्ट प्रायु
प्रतीन्द्रों की
त्रास्त्रिश की
सामानिक
देवों की
लोकपालों
की
| तनुरक्षक देवोंकी
चमर
एक सागर
एक पल्य.
वैरोचन
| उ. साधिक एक सा०
साधिक एक पल्य
भूतानन्द
| द० | तीन पल्योपम
एक पूर्व कोटि
धरणानन्द
| उ० | साधिक तीन पल्य .
सा. एक पूर्व कोटि
२३ पल्य
| एक करोड़ वर्ष
स्व-इन्द्रवत्
स्व-इन्द्रवत्
स्व-इन्द्रवत्
स्व-इन्द्रवत्
वेणुधारी
साधिक २३ प० ।
सा. एक करोड़ वर्ष
। २ पल्योपम
एक लाख वर्ष
वशिष्ठ
साधिक २ पल्य
सा. एक लाख वर्ष
जलप्रभादि छह द.
१३ पल्य
एक लाख वर्ष
| उ०
जलकान्त आदि छह
साधिक १३
पल्य
साधिक एक लाख वर्ष