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तिलोयपण्णसी
[ गाथा : १५६-१५९
एक्क-पलिदोवमाऊ सेणाधीसाण होदि चमरस्त । वइरोयणस्स अहियं भूदाणवस्य कोटि-पुथ्याणि ।।१५६॥
प ११ प १ । पुव्व को १। अर्थ :- चमरेन्द्र के सेनापति देवोंकी प्रायु एक पल्योपम, वैरोचन के सेनापति देवोंकी इससे अधिक और भूतानन्दके सेनापति देवोंकी आयु एक पूर्व-कोटि है ।।१५६।।
धरणाणंदे अहियं वच्छर-कोडी हवेदि वेणुस्स । 'सेरणा-महत्तराऊ अदिरित्ता' वेणुधारिस्स ॥१७॥
पु० को० १ । १० को० १ । व० को० १ । मर्थ :-धरणानन्दके सेनापति देवोंकी प्रायु एक पूर्वकोटिसे अधिक, देणुके सेनापति देवोंकी एक करोड़ वर्ष और वेणुधारीके सेनापति देवोंकी प्रायु एक करोड़ वर्षसे अधिक है ।।१५७॥
पत्तेक्कमेक्क-लक्खं पाऊ सेरणावईण जावन्यो । सेसम्मि वििरणदे "अदिरित उत्तरदम्मि ॥१५८।।
२० १ ल । व १ ल । पर्य :-शेष दक्षिणेन्द्रोंमें प्रत्येक सेनापतिकी प्रायु एक लाख वर्ष और उत्तरेन्द्रोंके सेनापतियोंकी आयु इससे अधिक जाननी चाहिए ।।१५८।।
पलिदोवमद्धमाऊ प्रारोहक-वाहणाण चमरस्स । वइरोयणस्स अहियं भूवाणंदस्स कोडि-बरिसाइं ॥१५॥
प।५३ ।व को १। मर्थ :-चमरेन्द्रके प्रारोहक वाहनोंकी पापु अर्ध-पल्योपम, वैरोचनके प्रारोहक-बाहनोंकी अर्ध-पल्योपमसे, अधिक और भूतानन्दके प्रारोहक वाहनोंको आयु एक करोड़ बर्ष होती है ।।१५९।।।
२., ब. क. ज.ठ. अधिरित्ता।
३.६. सेमाचईण।
४. ब, क.
१.८. ब.ज.प. सेसा। अधिरित, ज, 3. अतिरित्त'।