________________
२७८ ]
तिलोय पण्णत्ती
महाध्वजाओं एवं लघु ध्वजाओं की संख्या
हरि-रि-वसहखगाहिव' - सिहि ससि रवि हंस पउम चक्क धया । एक्केकम - जुद-सयमेवकेवकं
अट्ठ-सय खुल्ला ।।४५।।
[ गाथा : ४५-४७
अर्थ :- ( ध्वज भूमिमें ) सिंह, गज, वृषभ, गरुड़, मयूर, चन्द्र, सूर्य, हंस, पद्म और चक्र, इन चिह्न अंकित प्रत्येक चिह्नवाली एकसौ आठ महाध्वजाएँ और एक-एक महाध्वजाके श्राश्रित एकसी श्राट क्षुद्र ( छोटी ) ध्वजाएँ होती हैं ।। ४५ ।।
विशेषार्थ :- सिंह प्रादि १० चिह्न हैं प्रतः १०x१०८ - १०८० महाध्वजाएँ । १०८०x१०८ = ११६६४० छोटी ध्वजाएँ हैं ।
जिनालय में बन रहा का
वंदणभिसेय -णच्चण-संगी दालोय-मंड वेहि जुदा । कीण - गुसार- गिहि विसाल वर पट्टसालेह
॥४६॥
अर्थ :- ( उपर्युक्त जिनालय ) वन्दन, अभिषेक, नर्तन, संगीत और आलोक (प्रेक्षण) मण्डप तथा क्रीडागृह, गुणनगृह ( स्वाध्यायशाला ) एवं विशाल तथा उत्तम पट्ट (चित्र) शालाओंसे सहित हैं ||४६ ||
जिनमन्दिरों में श्रुत आदि देवियोंकी एवं यक्षोंकी मूर्तियोंका निरूपण
सिरिदेवी- सुददेवी-सव्वाण सणक्कुमार- जक्खारणं । वाणि श्रट्ट - मंगल देवच्छंदभिम जिण णिकेदे ||४७ ||
अर्थ :- जिनमन्दिरों में देवच्छन्दके भीतर श्रीदेवी, श्रुतदेवी तथा सर्वाह और सनत्कुमार यक्षोंकी मूर्तियाँ एवं अष्ट मंगलद्रव्य होते हैं ॥४७॥
१. द. व. क. ज ठ खगावद्द | २. द. चंदरण भिसेय 1 ३. द. देवशच्चारिण, ब. देवच्चारिण । ज. उ. देव देवच्चारिण, क. मेव रिंगच्चारिए ।