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पूर्णतः हल करके रखा गया है । संदृष्टियों का भी पूरा ग्युलासा किया गया है। इस संस्करण में मूल संदृष्टियों की संख्या हिन्दी अर्थ के बाद अंकों में नहीं दी गई है किन्तु उन संख्याओं को तालिकाओं में दर्शाया गया है । एक अन्य विशेषता यह भी है कि चित्रों और तालिकानों-सारणियों के माध्यम से विषय को सरलतापूर्वक ग्राह्य बनाने का प्रयत्न किया गया है। पहले अधिकार में ५० चित्र हैं, दूसरे में दो और तीसरे में एक, इस प्रकार कुल ५३ चित्र हैं।
पहले अधिकार में पूर्व प्रकाशित संस्करण में २८३ गाथायें थीं। इसमें तीन नयी गाथाएँ या छूटी हुई गाथाएँ (सं० २०९, २१६, २३७ ) जुड़ जाने से अब २८६ गाथायें हो गई हैं । इसी प्रकार दूसरे महाधिकार में ३६७ गाथाओं की अपेक्षा ३७१ (१६४, ३३१, ३३२, ३६५ जुड़ी हैं) और तीसरे महाधिकार में २४३ गाथाओं की अपेक्षा २५४ गाथाएँ हो गई हैं। तीसरे अधिकार में नई जुड़ी गाथाओं की संख्या इस प्रकार है-१०७, १८६, १७, २०२, २२२ से २२७ और २३२-३३ । इस प्रकार कुल १६ गाथाओं के जुड़ने से तीनों अधिकारों की कुल गाथाएँ ८९३ से बढ़ कर ९१२ हो गई हैं।
प्रस्तुत संस्करगा में प्रत्येक गाथा के विषय को निर्दिष्ट करने के लिए उपशीर्षकों की योजना की गई है और एतद् अनुसार ही विस्तृत विषयानुक्रमणिका तैयार की गई है।
(क) प्रथम महाधिकार :
विस्तृत प्रस्तावनापूर्वक लोक का सामान्य निरूपण करने वाला प्रथम महाधिकार पांच गाथाओं के द्वारा पंच परमेष्ठियों की बन्दना से प्रारम्भ होता है किन्तु यहां अरहन्तों के पहले सिद्धों को नमस्कार किया गया है, यह विशेषता है। छठी गाथा में ग्रंथ रचना की प्रतिज्ञा है और ७ से ८१ गाथाओं में मंगल, निमित्त, हेतु, प्रमाण, नाम और कर्ता की अपेक्षा विशद प्ररूपणा की गई है। यह प्रकरण श्री बीरसेन स्वामिकृत षट्खण्डागम की धवला टीका (पु० १ पृ०-७१) से काफी मिलता जुलता है किन्तु जिस गाथा से इसका निर्देश किया है वह गाथा तिलोयपण्णत्ती से भिन्न है
मंगल-णिमित्त-हेऊ परिमाणं णाम तह य कत्तारं।
बागरिय धपि पच्छा, बक्खारणउ सस्थमाइरियो ॥धवला पु० १/पृ०७ गाथा ८२-८३ में ज्ञान को प्रमाण, ज्ञाता के अभिप्राय को नम और जीवादि पदार्थों के संव्यवहार के उपाय को निक्षेप कहा है। गाथा ८५-८७ में ग्रंथ प्रतिपादन की प्रतिज्ञा कर ८८-१० में ग्रन्थ के नव अधिकारों के नाम निर्दिष्ट किये गये हैं।