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गाथा : २१७-२१६ ]
विदुप्रो महाहियारो पहली पृथिवी में पटलत्रामसे नारकियोंके शरीरका उत्सेध सत्त-ति-छ-दंड-हत्थंगुलारिण कमसो हति घम्माए ।
चरिमिदम्मि उदश्रो दुगुणो दुगुणो य सेस-परिमाणं' ॥२१७॥ दं ७, ह ३, अं६ । दं १५, ह २, अं १२ । दं ३१, ह १ । दं ६२, ह २ ।
दं १२५ । ५ २५० । दं ५००
प्रर्य :–घर्मा पृथिवीके अन्तिम इन्द्रकमें मारकियोंके शरीरको ऊँचाई सात धनुष, तीन हाथ और छह अंगुल है । इसके आगे शेष पृथिवियोंके अन्तिम इन्द्र कोंमें रहने वाले नारकियोंके शरीरको ऊँचाईका प्रमाण उत्तरोत्तर इससे दुगुना-दुगुना होता गया है ।।२१७॥
विशेषार्थ :--धर्मा पृथिवीमें शरीरको ऊंचाई ७ दंड, ३ हाथ, ६ अंगुल; वंशा पृ० में १५ दण्ड, २ हाथ, १२ अंगुल ; मेधा पृ० में ३१ दण्ड, १ हाथ; अंजना पृ० में ६२ दण्ड, २ हाथ : अरिष्टा पृ० में १२५ दण्ड ; मघवी पृ० में २५० दण्ड और माधवी पृथिवीमें ५०० दण्ड ऊँचाई है ।
रयरगप्पहक्विदीए' उदनो सीमंत-णाम-पडलम्मि । जीवाणं हत्थ-तियं सेसेसु हारिण-वड्ढोमो ॥२१॥
अर्थ :–रत्नप्रभा पृथिवीके सीमन्त नामक पटलमें जीवोंके शरीरकी ऊँचाई तीन हाथ है; इसके आगे शेष पटलोंमें शरीरकी ऊँचाई हानि-वृद्धिको लिए हुए है ।।२१८।।
आदी अंते सोहिय रूऊणिदाहिदम्मि हाणि-चया । मुह-सहिदे खिदि-सुद्ध णिय-णिय-पदरेसु उच्छेहो ॥२१६॥
ह २ । अं८ । भा
।
अर्थ :-अन्तमेंसे प्रादिको घटाकर शेष में एक कम अपने इन्द्रकके प्रमाणका भाग देनेपर. जो लब्ध नावे उतना प्रथम पृथिवीमें हानि-वृद्धिका प्रमाण है । इसे उत्तरोत्तर मुखमें मिलाने अथवा भूमि मेंसे कम करनेपर अपने-अपने पटलोंमें ऊँचाईका प्रमाण ज्ञात होता है ।।२१।।
१. द. ठ. ज. सेसचरिमाणं।
२. द. ब. ज, क. ठ. पुत्थीए। ३. द. प्रोदनो।