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तिलोय पण्णत्ती
उदाहरण :- दूसरी पृ० की उ० श्रायु सागर ( ३ पृथी में प्रयुकी हानि - वृद्धिका प्रमाण है ।
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[ गाथा : २१०-२११
१-२ ) ÷ ११ - १ सागर दूसरी
दूसरी पृथिवीमें पटल क्रमसे नारकियोंकी आयुका प्रमाण
तेरह उबही पढमे दो-दो जुत्ता' य जाव तेत्तीसं । एक्कारसेहि भजिदा बिदिय खिदी-इंदयाण' जेट्ठाऊ ॥२१० ॥
२३ । २६ । ९७ । १६ । ३ । ३ । ३ । २७ । १ । ३३ । ३ ।
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स्तनक जिह्वामें ३५ जिह्नक में उत्कृष्टायु है ।
अर्थ :- दूसरी पृथिवीके ग्यारह इन्द्रक बिलोंमेंसे प्रथम इन्द्रक बिलमें ग्यारहसे भाजित तेरह (77) सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट आयु है । इसमें तैंतीस (३) प्राप्त होने तक ग्यारहसे भाजित दो दो ( ) को मिलानेपर क्रमश: दूसरी पृथिवीके शेष द्वितीयादिक इन्द्रकोंकी उत्कृष्ट श्रायुका प्रमाण होता है || २१० ॥
में पैसा उनकरों
में बन में घात में संघात में १३ लोल में ३६, लोलक में है और स्तनलोलक या ३ सागर प्रमाण
तीसरी पृथिवी में पटल क्रमसे नारकियोंकी श्रायुका प्रमाण ।
इगतीस उवहि उवमा पभश्रो चज - वड्ढिदो य पत्तेक्कं ।
जा तेसठि णव भजिदं एदं तदियावणिम्मि जेट्ठ|ऊ ॥२११॥
१३५२४३६३ । ४७ । ५ । ५५ । ५१ । ६३ ।
अर्थ :- तीसरी पृथिवीमें नौसे भाजित इकतीस ( ) सागरोपम प्रभव या आदि है । इसके आगे प्रत्येक पटल में नीसे भाजित चार ( ) की तिरेसठ ( ) तक वृद्धि करनेपर उत्कृष्ट यायुका प्रमाण निकलता है | २११ । ।
तप्त में त्रसित में ; तपनमें ; तापन में ; निदाय में प्रज्वलित में उज्ज्वलित में 44 संज्वलित में और संप्रज्वलित नामक इन्द्रकमें अथवा ७ सागर प्रमाण उत्कृष्टायु है ।
१. द. दोड़ो जेद्वा य । ज क. ठ. दोद्दो जेत्ता थे । २. खिदीयं दया रण ।