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२१२ ] तिलोयपत्ती
[ गाथा : १६५ विषार्थ :-(१६०००-२०००-१४०००)-(१xx)-3-1= (xpi --xs)x= ६९९६१५ योजन अथवा ६६६६ योजन ७५०० दण्ड (धनुष) मघवी पृथिवीमें प्रकीर्णक बिलोंका ऊर्ध्व अन्तराल है।
'सहारणे विच्चालं एवं जाणिज्ज तह परहाणे । जं इंदय-परठाणे भरिणदं तं एस्थ वक्तव्वं ॥१९॥
। एवं पइग्णया विच्चाले समय
॥ एवं णिवास-खेत्तं समत्तं ॥१॥ प्रर्थ :-इस प्रकार यह प्रकीर्णक बिलोंका अन्तराल स्वस्थानमें समझना चाहिए । परस्थानमें जो इन्द्रक बिलोका अन्तराल कहा जा चुका है उसीको यहाँपर भी कहना चाहिए ।।१९।।
। इसप्रकार प्रकीर्णक बिलोंका अन्तराल समाप्त हुआ। ।। इसप्रकार निवास-क्षेत्रका वर्णन समाप्त हुप्रा ।।१।।
१. ठ. अट्ठाणे। २. द. वत्थच्वं ।