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१७६ ] . तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : १०३ इसीप्रकार अपनी-अपनी पृथिवीके असंख्यात योजन विस्तारवाले बिलोंकी संख्यामेंसे क्रमशः श्रेणीबद्ध बिलोंका प्रमाण-घटा देनेपर असंख्यात योजन विस्तारवाले प्रकीर्णक बिलोंका प्रमाण अवशिष्ट रहता है ।।१०३।।
इसप्रकार प्रत्येक पृथिवीके प्रकीर्णक बिलोंका प्रमाण ज्ञात कर लेना चाहिए । विशेषार्थ :-पहली-पृथिवी
संस्थात यो विस्तार बाले सर्व बिल ६०००००–१३ इन्द्रक=५९९९८७ प्रकीर्णक सं० यो० वाले । असंख्यात यो० विस्तार वाले सर्व बिल २४००००० -४४२० श्रेणी०=२३६५५८० प्रकीर्णक असंख्यात यो० बाले ।
दुसरी-पृथिवी ____ संख्यात यो० वि० वाले सर्व बिल ५०००००-११ इन्द्रक = ४६६६८६ प्रकीर्णक सं० यो. वाले । असंख्यात यो० वि० वाले सर्व बिल २००००००-२६८४ श्रेणी० - १९६७३१६ असं० यो. वाले।
तीसरी-पृथिवी ___ संख्यात यो• वि. वाले सर्व बिल ३०००००- १ इन्द्रक = २६६६६१ प्रकीर्णक संख्यात वाले । असं० यो० वाले सर्व बिल १२०००००-१४७६ श्रेणी०=११९८५२४ प्रकीर्णक असंख्यात यो वि वाले।
चौथी-पृथिवी संख्यात यो० के सर्व बिल २०००००–७ इन्द्रक= १६६६६३ प्रकी संख्यात यो वाले । असं यो• वाले सर्व बिल ८०००००-७०० श्रेणी०=७६६३०० प्रकी प्रसं० यो वाले।
पांचवीं-पृथिवी संख्यात यो के सर्व बिल ६००००-५ इन्द्रक = ५६६६५ प्रकी संख्यात यो० वाले। . असंख्यात. यो० के सर्व बिल २४००००--२६० श्रेणी०=२३९७४० प्रक्री० असं० यो• वाले !
छठी-पृथिवी संख्यात यो के सर्व बिल १९९९९---३ इन्द्रक= १९९६६ प्रकी० सं० यो० वाले । प्रसंख्यात यो० के सर्व बिल ७६६६६ --- ६० श्रेणी०-७६६३६ प्रकी प्रसं० यो० वाले।