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गाथा : ८७-८१ ]
विदुषो महाहियारो
{ √(२ × = x ४४२०) + (२९२ – ३) ३ - ( २९२–६) }÷=
=v७०७२० + ८२९९ – २८८६ = १६४ = १३ प्रथम पृ० के पदका प्रमारण ।
८
हैं ॥ ८८ ॥
इस गाथा का सूत्र :
पद={ √(२ चय × संकलित धन) + (श्रादिचयू) – ( श्रादि-चय ) } + चय
प्रत्येक पृथिवीके प्रकीर्णक बिलोंका प्रमाण निकालने की विधि
पत्तेयं रयणादी-सम्ध-बिलारणं ठयेज्ज परिसंखं । णिय - णिय-सेढीबद्ध' य इंदय - रहिदा पइण्णया होंति ॥८७॥
अर्थ :- रत्नप्रभादिक प्रत्येक पृथिवीके सम्पूर्ण बिलोंकी संख्या रखकर उसमेंसे अपने-अपने श्रेणीबद्ध और इन्द्रक बिलोंकी संख्या घटा देउसीको शेष न बिलोंका प्रमाण प्राप्त होता है ।। ८७ ।।
उणतीसं लक्खा रिंग पंचारणउदी - सहस्स-पंच-सया | सगसट्ठी - संजुत्ता पइरणया
1 २εε५५६७ ।
अर्थ :- प्रथम पृथिवीमें उनतीस लाख, पंचान्नवे हजार पाँचसी सडसठ प्रकीर्णक बिल
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पढम - पुढवीए ||६६ ॥
विशेषार्थ :- प्रथम पृथिवीमें कुल बिल ३०००००० हैं, इनमेंसे १३ इन्द्रक और ४४२० श्रेणीबद्ध घटा देनेपर ३००००००- ( १३ + ४४२० ) = २९९५५६७ प्रथम पृथिवीके प्रकीर्णक बिलोंकी संख्या प्राप्त हो जाती है ।
चवीस लक्खाणि सत्ताणवदो सहस्त-ति-सयाणि ।
पंत्तराणि होंति हु पइण्णया विदिय-खोणीए || ८ ||
२४६७३०५ ।
१. द. सेडीया, ब. सेहिया ठ. सेढीभा,