________________
गाथा : ८०.८२ ] विदुप्रो महाहियारो
[ १६५ विशेषार्थ :- (३२४८) + (३४२४१२)-(८४३) = १२० - ६० छठी पृथिवीगत श्रेणीबद्ध बिलोंका कुल प्रमाण ।
सातवीं पृथिवीमें मात्र ४ ही श्रेणीबद्ध बिल हैं। सब पृथिवियोंके समस्त श्रेणीबद्ध बिलोंको संख्या निकालनेके लिए प्रादि, चय और
गच्छका निर्देश चउ-रूवाई प्रावि पचय-पमाणं पि अटु-रूवाई। गल्छस्स य परिमाणं हवेदि एक्कोणपण्णासा ।।८०॥
४15 1४६। मर्थ :-( रत्नप्रभादिक पृथिवियोंमें सम्पूर्ण श्रेणीबद्ध बिलोंका प्रमाण निकालने के लिए) प्रादिका प्रमाण चार, चयका प्रमाण पाठ और गच्छ या पदका प्रमाण एक कम पचास अर्थात् ४९ होता है ।।८।।
सब पृथिवियोंके समस्त श्रेणीबद्ध बिलोंकी संख्या निकालनेका विधान
पद-वग्गं पद-रहिदं चय-गुणिदं पद-हवादि-जुदमद्ध" ।
मुह-दल-गुरिणव-पदेणं' संजुत्तं होदि संकलिदं ॥१॥
अर्थ :-पदका वर्गकर उसमेंसे पदके प्रमाणको कम करके अवशिष्ट राशिको चयके प्रमाणसे गुणा करना चाहिए । पश्चात् उसमें पदसे गुणिद यादिको मिलाकर और उसका प्राधा कर प्राप्त राशिमें मुखके अर्घ-भागसे गुणिद पदके मिला देनेपर संकलित धनका प्रमाण निकलता है ।।८।।
. (४९—४६ ) x ८+ ( ४६४४) + (२ ४ ४९) = विशेषार्थ
२ ( २४०१–४६ }४८+ ( १६६ ) + (९८)= २३५२५८+१६६ +९८-९६०४ संकलित धन ।
समस्त श्रेणीबद्ध-बिलोंकी संख्या रयरगप्पह-पहृदोसु पुढवीसु सव्व-सेढिबद्धाणं । घउरुसर-छच्च-सया णव य सहस्सारिप परिमाणं ।।८२॥
९६०४
१. ६. जुदमद, प. जुदमट्ठ। २. द. एदेणं । ३. द. ब. उत्तरछस्ससया।