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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : ११-१५
अर्थ :–इन तीनोंमें खरभाग नियमसे सोलह भेदों सहित जानना चाहिए। ये सोलह भेद चित्रादिक सोलह पृथिवीरूप हैं। इनमेंसे चित्रा पृथिवी अनेक प्रकार है ॥ १० ॥
'चित्रा' नामकी सार्थकता
गाणाविषण्ण मट्टीश्रो तह सिलातला उवला' । वालुव - सक्कर- सीसय रुप्प - सुवण्णाण यहरं च ॥११॥ श्रय-दंब - तउर-सासय-मणिस्तिला - हिंगुलाणि हरिदाल । पंजण - पवाल - गोमज्जगाणि रुजगं कप्रब्भ-पदराणि ॥१२॥
तह श्रम्भवालुकाम्रो फलिहं जलकंत-सूरकंताणि । चंदप्पह- वेलुरियं गेरुव - चंदणय - लोहिदंकाणि
।। १३ ।।
बंबय बगमश्र-सारग्ग-पहुवीणि विविह यण्णाणि । जा होंति त्ति एत्तेगं चित्तेति पवणिदा एसा ॥ १४ ॥
अर्थ :- यहाँ पर अनेकप्रकारके वर्णोंसे युक्त मिट्टी, शिलातल, उपल, वालु, शक्कर, शीशा, चाँदी, स्वर्ण तथा वज्र, अयस् ( लोहा), तांबा, त्रपु ( रांगा ), सस्यक ( सीसा ), मरिमशिला, हिंगुल ( सिंगरफ), हरिताल, अंजन, प्रवाल ( मूंगा), गोमेदक (मणिविशेष ) रुचक, कदंब ( धातुविशेष ), प्रतर ( धातुविशेष), अभ्रवालुका ( लालरेत), स्फटिकमरिण, जलकान्तमणि, सूर्यकान्तमरिण, चन्द्रप्रभ ( चन्द्रकान्तमपि ), वैडूर्यमणि, गेरू, चन्द्राश्म ( रत्नविशेष ) लोहितांक ( लोहिताक्ष ? ), बंबय ( पत्रक ? ), ( जगमोच ? ) और सारंग इत्यादि विविध वर्णवाली धातुएँ हैं, इसीलिए इस पृथिवीका 'चित्रा' इस नामसे वर्णन किया गया है ।।११-१४ ।।
चित्रा - पृथिवीकी मोटाई
एदाए बहलतं एक्क - सहस्सा हवंति जोयराया ।
तीए हेट्ठा कमसो चोद्दस रयणा' य खंड मही ॥ १५ ॥
अर्थ :- इस चित्रा पृथिवीकी मोटाई एक हजार योजन है। इसके नीचे क्रमश: चोदह नयी पृथिवीखण्ड ( पृथिवियाँ ) स्थित हैं ||१५||
१. ब. सिलातला श्रीवदादा | २. द. अरिदलं । ३. व अ. वण्णत्रो एसो ४. ब. एदाय | ५. द. हुवंति । ६ ब. द. क. ठ, रणाय विदमही ।