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१२८ ] तिलोयपणणती
[गाथा : २८५ वातरुद्ध क्षेत्र होता है। इसका घनफल अपने बाल अर्थात् साठ हजार योजनके सातवें-भाग बाल्य प्रमाण जगत्प्रतर होता है ।
विशेषार्य :- प्रथम पृथिवी अर्थात् मध्यलोकके समीप पवनोंकी चौड़ाई एक राजू, लम्बाई ७ राजू और मोटाई ६०००० योजन है। इसके घनफल को जगत्पतरस्वरूप करनेपर इसप्रकार होता है
==x• 2820x४१ = xx poox घनफल प्राप्त हुआ।
विदिय-पुढवीए हेछिम-भागावरुद्ध-वाव-खेत-घणफलं सत्त-भागण-जे रम्जुविचारमा सत्ता प्रहाला सहित जोगन हास-बाहल्ला असीदि-सहस्साहिय-सत्तण्हं लक्खाणं एगणपण्णास-भाग-बाहाल जगपदरं होदि 1=७८०००० ।
अर्थ :-दूसरी पृथिवीके अधस्तन भागमें वातावरुद्ध क्षेत्रका घनफल कहते हैं : सातवेंभाग कम दो राजू विष्कम्भवाला, सात राजू पायत और ६० हजार योजन बाहल्लवाला दूसरी पृथिवीका बातरुद्ध क्षेत्र है । उसका घनफल सात लाख, अस्सी हजार, योजनके उनचासवेंभाग बाहल्यप्रमाण जगत्प्रतर होता है।
. विशेषार्य :- अधोलोककी भूमि सात राजू और मुख एकराजू है। भूमिमें से मुख घटाने पर ( ७ – १) = ६ राजू अवशेष रहा । क्योंकि ७ राजू ऊँचाईपर ६ राजू घटते हैं, अतः एक राजूपर : राजू घटेगा, इसप्रकार प्रत्येक एक राजू ऊपर-ऊपर जाने पर घटेगा । प्रत्येक एक राजूपर
राजू घटाते जानेसे नीचेसे क्रमश: ३.० , ३५, ३, और राजू व्यास प्राप्त होता है । इसीलिए गाथामें दूसरी पृथिवीका ट्यास : राजू कहा गया है । =xxop००X%2goox = xx१०००० घनफल दूसरी पृथिवीके वातरुद्ध क्षेत्रका प्राप्त हुआ। .
तबिय-पढवीए हेठिम-भागावरुद्ध-वाद-खेस-घणफलं बे-सत्तम-भाग-हीण-तिषिणरज्जु-विक्खंभा सस-रज्जु-पायदा सहि-जोयण-सहस्स-बाहल्ला चालीस-सहस्साधियएक्कारस-लक्ख-जोयणाणं एगणपण्णास-भाग-बाहल्लं जगपदरं होदि । ११४०००० ।
अर्थ: तीसरी पृथिवीके अधस्तन-भागमें वातरुद्ध क्षेत्रका घनफल कहते हैं :-दो बटे सात भाग (3) कम तीन राजू विष्कम्भ युक्त, सात राजू लम्बा और साठ हजार योजन बाहल्यवाला तीसरी पृथिवीका वातस्त क्षेत्र है । इसका घनफल ग्यारह लाख चालीस हजार योजनके उनचासवें भाग बाहल्यप्रमाण जगत्प्रतर होता है।