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१२४ ] तिलोमपाती
[ गाथा : २८५. पार्श्वभागमें बारह ( ब्रह्मस्वर्ग के पार्श्वभागमें सोलह और सिद्धलोकके पार्श्वभागमें बारह ) योजन बाहल्यरूप वातवलयकी अपेक्षा दोनों ही पार्श्वभागोंमें स्थित वातक्षेत्रको जगत्पतर प्रमाणसे करनेपर एकसौ चौंसठ योजन कम अठारह हजार योजरके तीनसौ तैंतालीसवें-भाग बाहल्य प्रमाण जगत्प्रतर होता है।
विशेषार्थ :-सप्तम पथिवीसे सिद्धलोव पर्यन्त ऊँचाई १३ राज , विष्कम्भ ७ राज़ वातवलयोंकी मोटाईका प्रोसत ( १६+ १२ =२८ : २= १४ ), १४ योजन तथा पार्वभाग दो हैं, अतः १३ ४७x१४४२=२५४८ प्राप्त हुए, इन्हें जगत्प्रतररूपसे करने के लिए २५४४ अर्थात् १७ घनफल प्राप्त हुआ । ग्रन्थकारने इसे ='ER रूपमें प्रस्तुत किया है।
पुणो सस-भागायि-छ-रज्जु-मूल-विक्खंभेरण छ-रज्जूच्छेहेण एग-रज्जु-मुहेण सोलह बारह-जोयरण-बाहल्लेग दोसु वि पासेसु ठिब-वाद-खेत जगपवर-पमाणेण कवे बादालोस जोयण-सदस्स' 'तेदालीस-तिसद-भाग-बाहल्लं जगपदरं होदि = ४२००'।
अर्थ :-पुन: सात वभागसे अधिक छह राजू मूलमें विस्ताररूप, छह राजू उत्सेधरूप, मुखमें एक राजू विस्ताररूप अोर सोलह-बारह योजन बाल्यरूप ( सातवीं पृथिवी और मध्यलोकके पार्श्वभागमें ) बातवलयकी अपेक्षा दोनों ही पार्श्वभागोंमें स्थित बातक्षेत्रको जगत्प्रतरप्रमाणसे करनेपर बयालीस सो योजनके तीनसो तैतालीसवें-भाग बाहल्यप्रमाण जगत्प्रतर होता है ।
. विशेषार्थ :-सप्तमपृथ्वीके निकट पवनोंकी चौड़ाई ६७ अर्थात् । राजू है, यह भूमि है । तिर्थग्लोकके निकट पवनोंकी चौड़ाई १ राजू अर्थात् राजू है, यह मुख है । सप्तमपृथिवीसे मध्यलोक पर्यन्त पवनोंकी ऊँचाई ६ राज , मोटाई (१६+ १४ =२८-२) = १४ राजू है तथा पार्श्वभाग दो हैं, अत: [ + = ]x.xxx =६०० प्राप्त हुए, इन्हें जगत्प्रतरस्वरूप बनाने हेतु ३४३ से गुरिणत किया और ३४३ से ही भाजित किया। यथा- "9813 अर्थात् = ४२११ घनफल प्राप्त हुआ । इसे ४६ वर्गराजू योजन रूप में प्राप्त किया जानेसे ग्रन्थकारने =११ रूपमें प्रस्तुत किया है।
पुणो एग-पंच-एग-रज्जु-विक्खंभेण सत्त-रज्जूच्छेहेण बारह-सोलह-बारह-जोयणबाहल्लेण उरिम-दोसु वि पासेसु ठिद-वाद-खेत्तं “जगपदर-पमाणेण कवे प्रवासीविसमहिय-पंच-जोयण-सदाणं एगूणवण्णासभाग-बाहल्लं जगपदरं होदि ।=५८८ ।
२.६. जोयलक्खतेदालीमसदभागहिबाहल्लं । ३. ब. ४२००० ।
१.द. ब. सदा। ४, द. जगदपदर ।