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तिलोयपण्णात्ती
[ गाथा : २८१-२८३ मेरुतलसे ऊपर वातवलयोंकी मोटाईका प्रमाण . . मेरु-सलादो उरि कप्पाणं सिद्ध-खेत्त-पणिधीए । सउसीदी छण्णउदी अडजुव-सय बारसुत्तरं च सयं ॥२१॥ एत्तो घउ-चउ-होणं सत्तसु ठाणेसु ठविय पत्तेक्कं ।
सत्त-विहत्त होदि हु मारुद-बलयाण बहलत्त ।।२८२॥ |53|8| १०८ | ११२ | १०८ | १०४ ११:०६६६२ / ८८||
अर्थ : मेरुतलसे ऊपर सर्वकल्प तथा सिद्धक्षेत्रके पार्श्वभागमें चौरासी, छयानवे, एकसौ आठ, एकसौ बारह और फिर इसके प्रागे सात स्थानों में उक्त एकसौ बारहमेंसे उत्तरोत्तर चार-चार कम संख्याको रखकर प्रत्येकमें सातका भाग देनेपर जो लब्ध प्राबे उतना वातवलबोंकी मोटाईका प्रमाण है ॥२८१-२८२।।
विशेषार्थ :-जब ३३ राजूकी ऊँचाईपर ४ राजूकी वृद्धि है तब १३ राजू और राजूकी ऊँचाईपर कितनी वृद्धि होगी ? इसप्रकार दो त्रैराशिक करनेपर वृद्धिका प्रमाण क्रमशः पुरे राजू और राजू प्राप्त होता है।
मेरुतलसे ऊपर सौधर्म युगलके अधोभागमें वायुका बाहुल्य योजन, सौधर्मशानके उपरिम भागमें + = योजन और सानत्कुमार-माहेन्द्र के निकट + 18 योजन है । अन्न प्रत्येक युगलकी ऊँचाई आधा-आधा राजू है, जिसकी वृद्धि एवं हानिका प्रमाण राजू है, अतः अ. ब्रह्मो० के निकट 'ge+ = १ योजन, लो० का० के निकट १३२ .-=gयोजन, शु० महाशुक्रके समीप - - = यो०, सतार सह० के समीप x =18: योजन, प्रा० प्रा० के समीप : - योजन प्रा० अ० के समीप :- = ९२ यो, ग्रैवेयकादिके समीप २- योजन और सिद्धक्षेत्रके समीप -- अर्थात् १२ योजनकी मोटाई है।
पार्श्वभागोंमें तथा लोकशिखरपर पयनोंकी मोटाई तीसं इगिदाल-वलं कोसा तिय-भाजिवा य उणवण्णा । सत्तम-खिदि-पणिधोए बम्हजुगे बाउ-बहलत्त ॥२३॥
घनो घ० | तनु ।