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१८ तिशायरी
[ गाथा : २५१ अर्थ :-दूष्य क्षेत्रमें १४ से भाजित और ३ से गुणित लोकप्रमाण बाह्य उभय बाहुओंका और पाँचसे विभक्त लोक प्रमाण अभ्यन्तर दोनों बाहुप्रोंका धनफल है ॥२५॥
इसी क्षेत्रमें लघु बाहुनों का घनफल तीनसे गुरिणत और पैंतीससे भाजित लोक प्रमाण तथा यवक्षेत्रका घनफल चौदहसे भाजित लोक प्रमाण है ।।२५१।।
विशेषार्थ :--इस दूष्य क्षेत्रको बाह्म भुजा अर्थात् संख्या १ और २ का घनफल निम्नप्रकार है :
भूमि १ राजू , मुख राजू , ऊँचाई ७ राजू और वेध ७ राजू है अत: (+1)= ३४३४६xx = ! अर्थात् ७३३ घनराजू धनफल है । लोक ( ३४३ ) को १४ से भाजित कर जो लब्ध प्रावे उसको ३ से गुणित कर देने पर भी ( ३४३ : १४-२४३४३ )७३३ धनराजू ही प्राते हैं इसलिए गाथामें बाह्य बाहुओंका घनफल चौदह से भाजित और तीनसे गुरिणत ( ७३३) कहा है।
अभ्यन्तर दोनों बाहुओं अर्थात् क्षेत्र संख्या ३ और ४ का घनफल इसप्रकार है- (ऊँचाईमें भूमि + मुख =)xsxxx=33 अर्थात् ६८ घनराजू घनफल है, इसीलिए गाथामें पाँचसे भाजित लोकप्रमाण धनफल अभ्यन्तर बाहुओका कहा है ।
__अभ्यन्तर दोनों लघु-बाहुओं अर्थात् क्षेत्र संख्या ५ और ६ का धनफल इसप्रकार है-- (ऊँचाईमें भूमि + मुख= )xxxx= = २९३ घनराजू घनफल है । लोक (३४३) को तीनसे गुरिणत करके लब्धमें ३५ का भाग देनेपर भी (३४३४३ १०२६:३५) = २६३ धनराजू ही प्राप्त होते हैं इसलिए गाथामें तीनसे गुरिणत और ३५ से भाजित अभ्यन्तर दोनों लघु-वाहुओंका घनफल कहा गया है।
२३ यवों अर्थात् क्षेत्र संख्या ७, ८ और ६ का धनफल इसप्रकार है--एक यवकी भूमि १ राजू , मुख ०, ऊंचाई 1 और बेघ ७ है, तथा ऐसे यव : हैं, अत: (+=)xxxx५ = अर्थात् २४. धनराजू घनफल २३ यवोंका है लोकको चौदहसे भाजित करने पर भी ( ३४३ १४ )=२४३ घनराजू ही आते हैं इसीलिए गाथामें चौदहसे भाजित लोक कहा है । इसप्रकार ७३३ । ६८२+२६३ + २४३ -- १६६ धनराजू घनफल सम्पूर्ण दृष्य अधोलोकका है।
८. गिरि-कटक अधोलोकका घनफल :
गिरि ( पहाड़ी ) नीचे चौड़ी और ऊपर सँकरी अर्थात् चोटी युक्त होती है किन्तु कटक इससे विपरीत अर्थात् नीचे संकरा और ऊपर चौड़ा होता है । अधोलोकमें गिरि-कटकको रचना करनेसे २७ गिरि और २१ कटक प्राप्त होते हैं । यथा :--