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तिलोयपणती
[ गाथा : २४
३४३ १४ १३६३, १६४ | ३६ . २८७ । ३४७ । ५२०३ | ३६३ । २८ ।
अर्थ :-नीचेसे ऊपर-ऊपर सात स्थानों में धनराजको रखकर धनफलको जाननेके लिए गुणकार और भागहारको कहता हूं ॥२४७।।
उक्त सात स्थानोंमें पंचानवे, एक सौ इक्यासी, दो सौ सतासी, पाँच हजार दो सौ तीन, अट्ठाईस, उनहत्तर और उनचास ये सात गुणकार तथा चार, चारका वर्ग (१६), बारह, अड़तालीस, तीन, चार और चौबीस ये सात भागहार हैं ॥२४८-२४६।।
विशेषार्थ :-मन्दराकृति अधोलोकके सात खण्ड किये गये हैं, इन सातों खण्डोंका पृथक्पृथक् धनफल इसप्रकार है :
प्रथमखण्ड :-भूमि ७ राजू, मुख राजू, ऊँचाई ३ राजू और वेध ७ राजू है अत: (+१३)=wxxkxt=" धनराजू प्रथमखण्डका घनफल है ।
द्वितीयखण्ड:-इसकी भूमि राजू, मुख राजू, ऊँचाई : राजू, वेध ७ राजू है, अतः (4+3 ) =xxx= धनराजू द्वितीय खण्डका धनफल है।
तृतीय खण्ड :-इसकी भूमि ३ राजू, मुख ३ राजू, ऊँचाई १९ राजू और वेध ७ राजू है अत: (+)xxx=२५ घनराजू तृतीय खण्डका धनफल है ।
चतुर्यखण्ट :-इसको भूमि ३ राज, मुख ३. राजू, ऊँचाई १३ राजू और वेध ७ राजू है अतः (4+ ३४ ) -२.xxx3५१ घनराजू चतुर्थखण्डका धमफल है ।
पंचमखण्ड :—इसकी भूमि : राजू, मुख ३१ राजू, ऊँचाई राजू और वेध ७ राजू है, अत: (३+३३) =xxx = धनराजू पंचमखण्डका धनफल है ।
नोट :-तृतीय और पंचमखण्डकी भूमि क्रमशः ६ राजू और " राजू थी; किन्तु चार त्रिकोण कट जाने के कारण और राजू ही ग्रहण किये गये हैं।
षष्ट खण्ड :-इसकी भूमि ३१ राजू, मुख राजू, ऊँचाई ३ राजू और वेध ७ राजु है अतः (१+ ) =xxx= घनराजू षष्ठ खण्डका घनफल है।
____ सप्तम खण्ड:-इसको भूमि ३६ राजू, मुख ४६ राजू, ऊँचाई राजू और वेध ७ राजू है अतः (२६+ )=२६xxx= घनराजू सप्तमखण्ड अर्थात् चुलिकाका घनफल है।