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गाथा : २४७-२४६ ] पढमो महाहियारो
[ १५ विशेषार्थ :-९८ से विभक्त जगच्छ्रेणी अर्थात् । अर्थात् १ को ऊपर-ऊपर सात स्थानों पर रखवार कमसे ६८, ६२, ८६, १२, ३६, ३२ और १४ का गुणा करनेसे प्रत्येक क्षेत्रका प्रायाम प्राप्त हो जाता है । यह पायाम निम्नलिखित प्रक्रियासे भी प्राप्त होता है । यथा :
इस मन्दराकृति अधोलोकको भूमि ७ राजू और मुख १ राजू (७–१)-६ राजू अवशेष रहा । क्योंकि ७ राजूकी ऊँचाई पर ६ राजूकी हानि होती है, अत: राजूपर (३४) राजूकी हानि हुई 1 इसे ७ राजू आयाममेंमें घटा देनेपर (-3)= राजू आयाम राजूकी ऊँचाईके उपरितन क्षेत्रका है। [ यहाँ २४x७ राजू भूमि विस्तार और x १२= ६, राजू सुमेरुको जड़के ऊपरका विस्तार है । ] क्योंकि ७ राजूपर ६ राजूकी हानि होती है अतः । पर (3x1)=2: राजूकी हानि हुई; इसे उपरितन विस्तार मेंसे घटानेपर ( 2) अर्थात् १५४ राजू नन्दनवनकी तलहटीका विस्तार है । क्योंकि ७ राजूपर ६ राजूको हानि होती है अतः राजूपर (34)राजूको हानि हुई । इसे नन्दनवनकी तलहटीके विस्तार राजूमेंसे घटा देनेपर -1-= ५ राजू समविस्तारके उपरितन क्षेत्रका प्रायाम है ।
__ जब ७ राजूकी ऊँचाईपर ६ राजू की हानि होती है तब ३ राजूपर (४३) अर्थात् ३ राजूकी हानि हुई । इसे उपरितन आयाम ३ राजूमेंसे घटादेने पर ६१-५३= या २१ राजू सौमनसवनके उपरितन क्षेत्रका आयाम है, क्योंकि ७ राजू पर ६ राजूको हानि होती है अतः पर राजू पर (x2)= राजुको हानि हुई, इसे ३१ राजू में से घटा देने पर ३:अर्थात् २४ राजू समविस्तार के उपरितन क्षेत्रका प्रायाम है । क्योंकि ७ राजू पर ६ राजू को हानि होती है अतः ३ राजू पर (x)- राजूको हानि हुई । इसे उपरिम विस्तार ३३ राजूमें से घटा देने पर (१३-3) अर्थात् १ राजू का विस्तार पाण्डकवनकी तलहटीका आयाम है ।
हेट्ठाको रज्जु-घणा सत्तद्वारणेसु ठविय उड्डड्ढे । 'गुणगार-भागहारे विदफले तण्णिरूवेमो ॥२४७॥
गुणगारा परणरणउदी एक्कासीदेहि जुत्तमेक्क-सयं । 'सगसीदेहि दु-सयं तियधियदुसया पण-सहस्सा ॥२४८।। अडवीसं उणहत्तरि, उणवणं उरि-उरि हारा य । चउ चउवगं बारस अडदालं ति-चउक्क-चउवीसं ॥२४६॥
१. द. ठेविगुग्ण बासहेदु, द. ज. 8. ठबिगुण वासहेदु', क. ठविदूरण दासहेदु' गुणगारं पत्त इस्सामि । २. द. ब. क. ज. 8. कासेदेहि । ३. द, ब. सगतीसेदि दुस्मतिय घियदुसया ।