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है कि देव शास्त्र गुरु में प्रापकी भक्ति निरन्तर वृद्धिंगत हो । अनेक समितियों, संस्थाओं व क्षेत्रों को आपका उदार संरक्षण प्राप्त है । श्रावकाचित आपकी सभी प्रवृत्तियाँ सराहनीय एवं अनुमोदनीय हैं।
"तिलोयपण्णत्ती' ग्रन्थ नौ अधिकारों का विशालकाय ग्रंथ है । आपके हाथों में तीन अधिकारों का यह पहला खण्ड देते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता है। दूसरा और तीसरा खण्ड भी निकट भविष्य में म उदार दातारों के सहयोग से आपके स्वाध्यायार्थ प्रस्तुत कर सकेंगे, ऐसी आशा है ।
ग्रंथ प्रकाशन एक महदनुष्ठान है जिसमें अनेक लोगों का सहयोग सम्प्राप्त होता है । महासभा का प्रकाशन विभाग अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी प. पू. १०५ आर्यिका श्री विशुद्धमती माताजी के चरणों में शतशः नमोस्तु निवेदन करता है जिनके ज्ञान का सुफल इस नवीन हिन्दी टीका के माध्यम से हमें प्राप्त हुआ है । आशा है, पू. माताजी को ज्ञानाराधना शीघ्र ही हमें दूसरा व तीसरा खण्ड भी प्रकाशित करने का गौरव प्रदान करेगी।
महासभा का प्रकाशन विभाग ग्रन्थ के सम्पादक डा. चेतनप्रकाशजी पाटनी, गणित के प्रसिद्ध विद्वान् प्रो. लक्ष्मीचंदजी जैन और पुरोवाक् लेखक जैन जगत् के वयोवृद्ध संयमी विद्वान पं० पन्नालालजी साहित्याचार्य का भी अतिशय कृतज्ञ है जिनके सहयोग से प्रस्तुत संस्करण अपना वर्तमान रूप पा सका है । लेखन, सम्पादन, संशोधन कार्यों के अतिरिक्त भी ग्रंथ प्रकाशन के अनेक कार्य बच रहते हैं वे भी कम महत्वपूर्ण नहीं होते । समस्त पत्राचार पू. माताजी के संघस्थ ब्र• कजोड़ीमलजी कामदार ने किया है और वे ग्रन्थ सूजन में प्राने वाली तात्कालिक कठिनाइयों का भी निवारण करते रहे हैं । श्री सेठीजी से सम्पर्क कर प्रेस को कागज आदि पहुंचाने की व्यवस्था के गुरु भार का निर्वाह अ. धर्मचंदजी जैन शास्त्री ने किया है। महासभा का प्रकाशन विभाग इन दोनों महानुभावों का
आभारी है । गणितीय जटिल ग्रंथ के सुरुचिपूर्ण मुद्रण के लिए मुद्रक श्री पाँचूलालजी जैन कमत प्रिन्टर्स भी धन्यवाद के पात्र हैं।
प्राशा है, महासभा का यह गौरवपूर्ण प्रकाशन वीतराग की वाणी के सम्यक् प्रचार में कृतकार्य होगा। इति शुभम्
राजकुमार सेठो मंत्री:प्रकाशन विभाग श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा