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७६ ] तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : २२१ उपर्युक्त आकृतिमें एक मुरज और दोनों पार्श्व भागोंमें ५० अर्धयव अर्थात् २५ यब प्राप्त होते हैं । प्रत्येक अर्धयव राजू चौड़ा, ६ राजू ऊँचा और ७ राजू मोटा है। मुरज १४ राजू ऊँची, ऊपर-नीचे एक-एक राजू चौड़ी एवं मध्यमें ३३ राजू चौड़ी है । इसकी मोटाई भी ७ राजू है ।
अर्धयबका घनफल xxx घनराजू है, अत: पूर्ण यवका घनफल ३३४३. अर्थात् ॐ धनराजू प्राप्त होता है । इन पूर्ण यवोंको संख्या २५ है इसलिए गाथामें ७० से भाजित लोकको २५ से गुणित करने हेतु कहा गया है ।
मुरजकी चौड़ाई मध्यमें ३३ राजू और अन्तमें एक राजू है। ३३+१= राजू हुआ। इसका प्राधा करने पर Ex- राजू मुरजका सामान्य व्यास प्राप्त होता है । इसे मुरजकी १४ राज ऊँचाई और ७ राज मोटाईसे गरिणत करनेपर १४ १३.५=१४५ प्राप्त हुआ। अंश और हरको ७ से गुरिणत करनेपर ४३४ घनराज प्राप्त होता है इसलिए गाथामें नौसे गुरिरात लोकमें १४ का भाग देने को कहा गया है ।
यवमुरजका सम्मिलित घनफल इसप्रकार है
जबकि अर्धयवका घनफल (Ex.xx६) = धनराजू है तब दोनों पार्श्वभागोंके ५० अर्धयबोंका कितना वनफल होगा? इसप्रकार राशिक करने पर ३५ x ५-३ अर्थात् १२२: घनराजू प्राप्त हुए।
इसीप्रकार अर्धमुरज हेतु ( भूमि+१ मुख ), तथा घनफल-xxx- धनराजू है । जबकि अर्धमुरजका घनफल ""' धनराजू है तब सम्पूर्ण (एक) मुरजका कितना होगा? xxxs="' अर्थात् २२०३ धनराजू होता है । इन दोनोंका योग कर देनेसे (१२२३ + २२०३) = ३४३ घनराजू सम्पूर्ण यवमुरजका घनफल प्राप्त होता है।
यव मध्यक्षेत्रका घनफल एवं उसकी प्राकृति घण-फलमेक्कम्मि जवे 'पंचत्तीसद्ध-भाजिदो लोगो। तं पणतीसद्ध -हदं सेवि-धणं होवि जव-खेत्ते ॥२२१॥
१. द. ब. पंचतीसाजिदो।
२. द.ब. तप्परगतीसं दहदं ।