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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : १६८-१६६ है । जबकि राजूकी ऊँचाईपर ४ राजूकी वृद्धि होती है, तब : राजू पर (¥xx3) को वृद्धि होगी । इसे में जोड़ देनेपर (A+)=१ राजू या ५ राजू व्यास तीसरे युगलके समीप प्राप्त होता है।
इसके मा प्रत्येक युगल राजूको ऊँचाई पर है, अतः हानिका प्रमाए भी राजू हो होगा। - राजू व्यास लान्तव-कापिष्टके समीप' - राजू व्यास शुक्रमहाशुऋके समीप, ४ - = राजू व्यास सतार-सहस्रारके समीप, -- राजू व्यास मानत-प्राणतके समीप और -3" राजू व्यास प्रारण-अच्युत युगल के समीप प्राप्त होता है।
यहाँसे लोकके अन्त तककी ऊँचाई एक राजू है। जब राजूकी ऊंचाई पर ४ राजूकी हानि है, तब एक राजूकी ऊँचाईपर (¥xxt)= राजूकी हानि प्राप्त हुई। इसे ' राजूमेंसे घटाने पर (१७-) अर्थात् लोकके अन्तभागका ब्यास एक राजू प्राप्त होता है । यथा
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ऊर्ध्वलोकके दशों क्षेत्रोंके घनफलका प्रमाण उणदालं पण्णतरि तेसीसं तेत्तियं च उगतीसं । 'परणवीसमेवीसं 'सत्तरसं तह य बाबीसं ॥१८॥ एदारिण य पत्तेक्कं घण-रज्जूए दलेण गुणिवाणि । मेरु-तलादो उरि उरि आयंति विरफला ॥१६६।।
१. ब. पणुवीस।
२. द. ज.ठ. सत्तारस ।