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पढमो महाहियारो
महतम - पहा हेट्टिम - अंते 'छड्डी हि समप्पबे रज्जू ।
तत्तो सत्तम-रज्जू लोयस्स तलम्मि णिट्ठादि ॥ १५७ ॥
गाथा : १५७ - १६० ]
। ७६ । ७७ ।
अर्थ :- पूर्वोक्त क्रमसे छठा राजू महातम ः प्रभा के नीचे अन्त में समाप्त होता है और इसके श्रागे सातवाँ राजू लोकके तलभागमें समाप्त होता है ।। १५७ ।।
मध्यलोकके ऊपरी भागसे अनुत्तर विमान पर्यन्त राजू विभाग
मज्झिम- जगस्स उवरिम भागादु दिवड्ढ-रज्जु-परिमाणं । इगि-जोयण-लक्खूणं' सोहम्म विमाण - धय-दंडे
।। १५८ ।।
१४३ । रि यो १००oon
अर्थ :- मध्यलोकके ऊपरी भाग से सौधर्म विमानके ध्वज-दण्ड तक एक लाख योजन कम डेहराजू प्रमारण ऊँचाई है ।। १५८।।
विशेषार्थ :- मध्यलोकके ऊपरी भाग ( चित्रा पृथिवी ) से सौधर्मविमानके ध्वजदण्ड पर्यन्त सुमेरुपर्वतकी ऊँचाई एक लाख योजन कम डेढ़ राजू प्रमाण है ।
बच्चदि दिवद-रज्जू माहिद- सरणकुमार- उवरिम्मि । रिपट्टादि श्रद्ध-रज्जू बम्हुत्तर - उड्ढ - भागम्मि ।। १५६ ॥
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।। १४३ | ४ |
अर्थ :- इसके आगे डेढ़राजू, माहेन्द्र और सनत्कुमार स्वर्गके ऊपरी भाग में समाप्त होता है । अनन्तर आधा राजू ब्रह्मोत्तर स्वर्गके ऊपरी भाग में पुर्ण होता है ।। १५६ ।
अवसादि श्रद्ध- रज्जू काविट्ठस्सोवरिट्ठ" - भागम्मि । सच्चिय महसुष कोवरि सहसा रोवरि य सच्चेव । ११६० ॥
। ९४ । नष्ट | ५४ |
१. ब. क. खीहि । २. द. लक्खोणं, क. लक्खाणं ।
धरज्जूवमुत्तरं । ५. क. सोबरिम ।
३. द. व. १४ ३ । १४३ ।
४. य.