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गाथा : १२७-१३० ] पढमो महाहियारो
[२६ समयं पडि' एक्केक्कं वालग्गं फेडिदम्हि सो पल्लो। रित्तो होदि स कालो उद्धारं णाम पल्लं तु ॥१२७॥
॥ उद्धार-पल्लं ॥ अर्थ : त्र्यवहारपल्यको रोम-राशिमेंसे प्रत्येक रोम-खण्डोंके, असंख्यात करोड़ वर्षों के जितने समय हों उतने खण्ड करके, उनसे दूसरे गल्यको भरकर पुन: एक-एक समयमें एक-एक रोमखण्डको निकालें । इसप्रकार जितने समयमें वह दूसरा पल्य ( गड्ढा ) खाली होता है, उतना काल उद्धार नामके पल्यका है ।।१२६-१२७।।।
। उद्धार-पल्यका कथन समाप्त हुप्रा ॥
अद्धार या अद्धापल्यके लक्षण प्रादि एदेणं पल्लेणं दीव-समुद्दाण होदि परिमाणं । उद्धार-रोम-रासि 'छेत्तूरणमसंख-वास-समय-समं ॥१२८।। पुव्वं व विरचिदेणं तदियं श्रद्धार-पल्ल-रिगप्पत्ती ।। णारय-तिरिय-गराणंसुराण-कम्म-द्विदी तम्हि ॥१२६॥
॥ अद्धार-पल्लं एवं पल्लं समत्तं ॥ मर्थ :-इस उद्धार-पल्यसे द्वीप और समुद्रोंका प्रमाण जाना जाता है। उद्धार-पल्यकी रोम-राशिमेंसे प्रत्येक रोम-खण्डके असंख्यात वर्षोंके समय-प्रमाण खण्ड करके तीसरे गड्ढेके भरनेपर और पहलेके समान एक-एक समयमें एक-एक रोम-खण्डको निकालनेपर जितने समयमें बह गड्ढा रिक्त होता है उतने कालको अद्धार पल्योपम कहते हैं । इस अद्धा पल्यसे नारकी, मनुष्य और देवोंकी आयु तथा कर्मोकी स्थितिका प्रमाण (जानना चाहिए) ।।१२८-१२६।।
. ॥ अद्धार-पल्य समाप्त हुना । इसप्रकार पल्य समाप्त हुआ ।
व्यवहार, उद्धार एवं प्रद्धा सागरोपमोंके लक्षण एवारणं पल्लाणं दहप्पमारगाउ कोडि-कोडीयो। सायर-उबमस्स पुढं एक्कस्स हवेज्ज परिमाणं ।।१३०।। ॥ सायरोपमं समत्त ।
-- - - - - .१. म. पजियपकेयकं । . २. द. छेत्त रणं संख ।