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मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
७| ३०-३२ ]
सातवाँ अध्याय
दिनतके अतिचार-
ऊर्ध्वाधिस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्र वृद्धिस्मृत्यन्तराधानानि ॥ ३० ॥
ऊर्ध्वव्यतिक्रम अधोव्यतिक्रम, तिर्यग्व्यतिक्रम, क्षेत्रवृद्धि और स्मृत्यन्तराधान ये दिखत के पाँच अतिचार है ।
दिशा के परिमाणको उल्लघन करनेको व्यतिक्रम कहते हैं। ऊपर के परिमाणको उल्लं घन कर पर्वत आदिपर चढ़ना ऊर्ध्वव्यतिक्रम है, इसी प्रकार नीचे कुंआ श्रादिमें उतरना अधोन्यतिक्रम है और सुरत, बिल आदिमें तिरछा प्रवेश करना तिर्यग्व्यतिक्रम है । प्रमाद अथवा मोहादिके कारण लोभ में आकर परिमित क्षेत्रको बढ़ा लेना क्षेत्रवृद्धि है, अर्थात् परिमित क्षेत्र के बाहर लाभ आदि होनेकी आशासे वहाँ जाना था जानेकी इच्छा करना क्षेत्रवृद्धि है और दिशाओं के प्रमाणको भूल जाना स्मृत्यन्तराधान है । देशव्रत के अतिचार
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आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपात पुगलक्षेपाः ॥ ३१ ॥
आनयन, प्रेष्यप्रयोग, शब्दानुपात, रूपानुपात और पुत्ररक्षेप ये देश के पांच अतिचार हैं ।
मर्यादा बाहरकी वस्तुओंको अपने क्षेत्रमें मंगाकर क्रय विक्रय आदि करना आनयन है। मर्यादाके बाहर नौकर आदिको भेजकर इच्छित कार्यकी सिद्धि कराना प्रेष्यप्रयोग है। कार्यकी सिद्धिके लिये मर्यादासे बाहर वाले पुरुषोंको खांसी आदि के शब्द द्वारा अपना अभिप्राय समझा देना शब्दानुपात है। इसी प्रकार मर्यादा से बाहरवालोंको अपना शरीर दिखाकर कार्यकी सिद्धि करना रूपानुपात है तथा मर्यादासे बाहर कंकर. पत्थर आदि फेंककर काम निकालना पुलक्षेप है ।
अनर्थदण्डव्रत के अतिचार
कन्दप कौल्कुच्य मौखर्यास मीचयाधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि ॥ ३२ ॥
कंदर्प, कॉस्मय, भौखर्य, असमीक्ष्याधिकरण और उपभोगपरिभोगानर्थक्य ये अनर्थदण्डन के पाँच अतिचार हैं।
raat area होनेके कारण हास्यमिश्रित अशिष्ट वचन बोलना कन्दर्प है । शरीर से दुष्ट चेष्टा करते हुए हास्यमिश्रित अशिष्ट पदका प्रयोग करना कौम्य है । ष्टापूर्वक बिना प्रयोजनकै आवश्यकता से अधिक बोलना मौखर्य है। बिना विधारे अधिक प्रवृत्ति करना असमीक्ष्याविकरण है। इसके तीन भेद हैं-मनोगत, बागत और कायगत समीक्ष्याधिकरण | मिध्यादृष्टियों के द्वारा रचित अनर्थक काव्य आदिका चिन्तन करना मनोगत असमीक्ष्याधिकरण है, बिना प्रयोजन दूसरोंको पीड़ा देनेवाले बन्चनको बोलना arriत असमीयाधिकरण है और विना प्रयोजन सम्चिन्त और अचिन फल, फूल आदि का छेदना तथा अग्नि, विष आदिका देना कायगत असमीयाधिकरण है। उपभोगपरिभोग पदार्थों को अत्यधिक मूल्य खरीदना तथा आवश्यकतासे अधिक भोग और उपभोग पदार्थोंको रखना उपभोगपरिभोगानर्थक्य है ।
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