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________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार [५।३४ ३६ उत्पत्ति होती है। इसी प्रकार संख्यात, असंख्यात और अनन्त परमाणु वाले स्कन्धोंकी भी उत्पत्ति होती है । स्निग्ध और रूक्ष गुणके एकसे लेकर अनन्त तक भेद होते हैं। जैसे जल, बकरीका दूध और घृत, गायका दूध और घृत भैसका दूध और घृत, और ऊँटनी का दूध और घृत इनमें स्निग्ध गुण की उत्तरोनर अधिकता है । धूलि, रेत, पत्थर, वत्र आदिमें रूक्ष गुणकी उत्तरोत्तर अधिकता है। इसी प्रकार पुद्गल परमाणुओंमें स्निग्ध और रूक्ष गुणका प्रकर्ष और अपकर्ष पाया जाता है। न जघन्य गुणानाम् ॥३४॥ जघन्य गुणवाले परमाणुओंका बन्ध नहीं होता है। प्रत्येक परमाणुमें स्निग्ध आदिके एकसे लेकर अनन्त तक गुण रहते हैं। गुण उस अविभागी प्रतिच्छेद ( शक्तिका अंश ) का नाम है. जिसका दूसरा विभाग या विवेचन म किया जा सके। जिन पर. मागुओं ने स्निग्धता और रूक्षताका एक ही गुण या अंश रहता है उनका परस्पर यन्ध नहीं हो सकता। गुण शब्द का प्रयोग गौण, अवयव, द्रव्य, उपकार, रूपादि, ज्ञानादि, विशेषण, भाग आदि अनेक अर्थों में होता है। यहाँ गुण शब्द भाग (अविभागी अंश) अर्थ में लिया गया है। एक गुणयाले स्निग्ध परमाणु का एक, दो, तीन आदि अनन्त गुणवाले स्निग्ध या रूक्ष परमाणु के साथ वध नहीं होगा। इसी प्रकार एक गुणवाले रूक्ष परमाणुका एक, दो, तीन आदि अनन्त गुणवाले रूक्ष या स्निग्ध परमाणु के साथ बन्ध नहीं होगा। जघन्य गुणवाले खिग्ध और रूक्ष परमाणुओंको छोड़कर अन्य स्निग्ध और रूक्ष परमाणुओं का परस्पर में बन्ध होता है। गुणसाम्ये सदृशानाम् ॥ ३५॥ गुणोंकी समानता होनेपर एक जातियाले परमाणुओंका भी बन्ध नहीं होता है। अर्थात् दो गुण वाले स्निग्ध परमाणुका दो गुण वाले स्निग्ध या रूक्ष परमाणुके साथ बन्ध नहीं होता है, और दो गुणवाले रूक्ष परमाणुका दो गुणवाले रूक्ष या स्निग्ध परमाणुके साथ चन्ध नहीं होता है। यद्यपि गुणकी समानता होनेपर सजातीय या विजातीय किसी प्रकार के परमाणुओं का बन्ध नहीं होता है और इस प्रकार सूत्र में सदृश शब्द निरर्थक हो जाता है लेकिन सहश शब्द इस बातको सूचित करता है कि गुणोंकी विषमता होनेपर समान जातिवाले परमाणुओका भी अन्ध होता है केवल विसदृश जातिवाले परमाणुओंका ही नहीं । बन्ध होनेका अन्तिम निर्णय द्वयधिकादिगुणानां तु ॥ ३६ ॥ दो अधिक गुपयाले परमाणुओंका बन्ध होता है । तु शब्दका प्रयोग पादपूरण,अवधारण, विशेषण और समुच्चय इन चार अर्था में होता है उनमेंसे यहाँ तु शब्द विशेषणार्थक है। पूर्व में जो बन्धका निवेध किया गया है उसका प्रतिषेध करके इस सूत्र में बन्धका विधान किया गया है। दो गुणवाले स्निग्ध परमाणुफा एक, दो और तीन गुणवाले स्निग्ध या रूक्ष परमाणु के साथ बन्ध नहीं होगा किन्तु चार गुणबाले स्निग्ध या रूक्ष परमाणुके साथ वन्ध होगा। दो गुणवाले स्निग्धपरमाणुका पाँच, छह, आदि अनन्त गुणवाले स्निग्ध
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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