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पचम अध्याय
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एक साथ रहता है । इस विषय में आगम प्रमाण भी है । प्रवचनसार में कहा है कि सूक्ष्म, बादर और नाना प्रकार के अनन्तानन्त पुल स्कन्धोंसे यह लोक ठसाठस भरा है।
इस विषय में रुई की गांठ का भी उपयुक्त है। फैली हुई रुई अधिक क्षेत्रको घेरती है जब कि गांठ बाँधनेपर अल्पक्षेत्र में आ जाती है ।
असंख्येयभागादिषु जीवानाम् ।। १५ ।।
जीवोंका अवगाह लोकाकाशके असंख्यातवें भागसे लेकर समस्त लोकाकाशमें है । लोफाकाशके असंख्यात भागोंमें से एक, दो, तीन आदि भागों में एक जीव रहता है और लोकपूरणसमुद्रात के समय वही जीव समस्त लोकाकाशमें व्याप्त हो जाता है ।
प्रश्न- यदि लोकाकाश के एक मामें एक जीव रहता है तो एक भाग में द्रव्य प्रमाणसे माता हूँ आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज शरीरयुक्त अनन्तानन्त जीवराशि कैसे
उत्तर - सूक्ष्म और बादर के भेदसे जीवोंका एक आदि भागों में अवगाह होता है । अनेक बादर जीव एक स्थान में नहीं रह सकते क्योंकि वे परस्पर में प्रतिघात ( बाधा ) करते हैं, लेकिन परम्पर में प्रतिघात न करने के कारण एक निगोद जीवके शरीर में अनन्तानन्त सूक्ष्म जीव रहते हैं। बादर जीवोंसे भी सूक्ष्म जीवोंका प्रतिघात नहीं होता है । असंख्यात प्रदेशी जीव लोकके असंख्यातवें भाग में कैसे रहता है
प्रदेश संहारविसर्पाभ्यां प्रदीपवत् ॥ १६ ॥
दीपक प्रकाशकी तरह जीव प्रदेशोंके संकोच और विस्तारकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें आदि भागों में रहता है। दीपकको यदि खुले मैदानमें रक्खा जाय तो उसका प्रकाश दूर तक होगा। उसी दीपकको कोठे में रखने से कम प्रकाश और घड़ेमें रखने से और भी कम प्रकाश होगा | इसी प्रकार जीव भी अनादि कार्मण शरीरके कारण छोटा और बड़ा शरीर धारण करता है और जीवके प्रदेश संकोच और विस्तारके द्वारा शरीरप्रमाण हो जाते हैं। लघु शरीर में प्रदेशोंका संकोच और बड़े शरीर में प्रदेशों का विस्तार हो जाता है लेकिन जीव यही रहता है जसे हाथी और चींटीके शरीर में ।
एक प्रदेशमें स्थित होनेके कारण यद्यपि धर्म आदि द्रव्य परस्पर में प्रवेश करते हैं। लेकिन अपने अपने स्वभावको नहीं छोड़ते इसलिये उनमें संकर या एकत्व दोष नहीं हो सकता । पचास्तिका में कहा भी है कि- "ये द्रव्य परस्पर में प्रवेश करते हैं, एक दूसरे में मिलते हैं, परस्परको अवकाश देते हैं लेकिन अपने अपने स्वभावको नहीं छोड़ते ।" धर्म और अधर्म द्रव्यका उपकार--- गतिस्थित्युपग्रह धर्माधयोरुपकारः || १७ ||
एक देशले देशान्तर में जाना गति है। ठहरना स्थिति है। जीव और पुद्गलोंको गमन करने में सहायता देना धर्म द्रव्यका उपकार और जीव तथा पुद्गलोंको ठहरने में सहायता देना अधर्म द्रव्यका उपकार है । यद्यपि उपकार दो हैं लेकिन उपकार शब्दको सामान्यचाची होनेसे सूत्र में एकवचनका ही प्रयोग किया है।
प्रश्न- सूत्र में उपग्रह शब्द व्यर्थ है क्योंकि उपकार शब्दसे ही प्रयोजन सिद्ध हो जाता है इसलिये 'गतिस्थिती धर्माधर्मयोरुपकारः' ऐसा सूत्र होना चाहिये |
उत्तर-यदि सूत्र में उपग्रह शब्द न हो तो जिस प्रकार धर्म द्रव्यका उपकार गति और अधर्म का उपकार स्थिति है ऐसा क्रम से होता है उसी प्रकार जीवोंके गमनमें सहायता