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४१४ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[ ४॥३२-३८ आरणाच्युतालमेकैकन नवसु प्रैवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्धौ च ॥ ३२ ॥
भारण और अच्युत स्वर्ग से ऊपर नव अवेयकों में, नष अनुदिशों में और विजय आदि विमानों में एक एक सागर बढ़ती हुई आयु है । सूत्र में नव शब्दका प्रण यह बतलाता है कि प्रत्येक प्रैवेयकमें एक एक सागर आयुकी वृद्धि होती है । 'विजयादिषु' में आदि शाब्द के द्वारा नव अनुदिशेका ग्रहण होता है।
इस प्रकार प्रथम वेयकमें तेईस सागर और मवमें प्रैवेयकमें इकतीस सागरकी आयु है। नव अनुदिशों में बत्तीस सागर और विजय आदि पाँच विमानों में तेंतीस सागरकी
उत्कृष्ट आयु है । सर्वार्थसिद्धिमें जघन्य आयु नहीं होती इस बातको बतलाने के लिये सूत्रमें मार्गदर्शर्वार्थसिन्धिामदलो सुस्वाहासागर जी महाराजेयकोंके नाम–१ सुदर्शन, २ अमोध, ३ सुप्रबुद्ध, ४ यशोधर, ५ सुभद्र, ६ सुविशाल, " सुमनस, ८ सौमनस और ९ प्रीतिकर ।
स्यों में जघन्य आयुका वर्णन
अपरा पल्योपममधिकम् ।। ३३ ।। सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के प्रथम पटलमें कुछ अधिक एक पल्यकी आयु है।
परतः परतः पूर्वा पूर्वाऽनन्तरा ।। ३४ ।। पहिले पहिलेके पटल और स्वाँकी आयु आगे आगेके पटलों और स्वर्गोको जघन्य आयु है । अर्थात् सौधर्म और ऐशान स्वर्गकी उत्कृष्ट स्थिति सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग में जघन्य प्रायु है। इसी क्रमसे विजयादि चार विमानों तक जघन्य आयु जान लेना चाहिये ।
नारकियोंकी जघन्य अायु-
नारकाणाश्च द्वितीयादिषु ॥ ३५ ॥ पहिले पहिलेके नरकोंकी उत्कृष्ट आयु दूसरे आदि नरकोंमें जघन्य आयु होती है। इस प्रकार दूसरे नरकमें जघन्य आयु एक सागर और सातवें नरककी जघन्य आयु बाईस सागरकी है।
दशवर्षसहस्राणि प्रथमायाम् ॥ ३६ ॥ पहिले नरकमें जघन्य आयु दश हजार वर्षकी है। यह जघन्य आयु प्रथम पटलमें है। प्रथम पटलकी उत्कृष्ट स्थिति नब्बे हजार वर्ष द्वितीय पटलकी जघन्य आयु है। इसी प्रकार आगेके पदोंमें जघन्य आयुका क्रम समझ लेना चाहिये।
भवनवासियोंकी जघन्य आयु--
भवनेषु च ॥ ३७ । भवनवासियोंकी जघन्य आयु दश हजार वर्षकी है।
व्यन्तरोंकी जघन्य आयु
व्यन्तराणाश्च ॥ ३८॥ व्यन्तर देवाकी भी जघन्य आयु दश हजार वर्षकी हैं ।