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तत्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
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तेजस नामकर्मके उदयसे होनेवाले तेज युक्त शरीरको तेजस शरीर कहते हैं । कार्मण नामकर्म के उदयसे होनेवाले ज्ञानावरणादि आठ कर्मों के समूहको कार्मण शरीर कहते हैं । यद्यपि सभी शरीरोंका कारण कर्म होता है फिर भी प्रसिद्धिका कारण कर्म विशेषरूप से बतलाया है ।
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शरीरों में सूक्ष्मत्व----
परं परं सूक्ष्मम् ॥ २७ ॥
शरीर सूक्ष्म हैं । अर्थात् औद्वारिकले वैक्रिटिक सूक्ष्म है,
पूर्वकी अपक्षा आगे आगे वैककिसे आहारक इत्यादि ।
शरीरोंके प्रदेश–
प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं प्राक् तैजसात् ।। ३८ ।।
तेजस शरीर से पहिले के शरीर प्रदेशकी अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं अर्थात् औदारिकसे बेक्रियिक शरीर के प्रदेश असंख्यचतुपेश और जैकखिको सुन कसे महेशजी महाराज असंख्यातगुगे हैं । औदारिकादि शरीरों में उत्तरोत्तर प्रदेशकी अधिकता होनेपर भी उनके संगठनमें लोड पिण्डके समान घनत्व होनेसे सूक्ष्मता है और पूर्व पूर्वके शरीरों में प्रदेशोंकी न्यूनता होनेपर भी तूलपिण्डके समान शिथिल होनेसे स्थूलता है। यहाँ पल्यका असंख्यातवाँ भाग अथवा श्रेणीका असंख्यातवां भाग गुणाकार हैं ।
अनन्तगुणे परे ॥ ३९ ॥
अन्तके दो शरीर प्रदेशकी अपेक्षा अनन्तगुणे हैं। अर्थात् आहारकसे तेजसके प्रदेश अनन्तगुणे हैं और तैजससे कार्मण शरीरके अनन्तगुणे हैं। यहाँ गुणाकार का प्रमाण अयों का अनन्तगुणा और सिद्धों का अनन्त भाग है ।
अप्रतिघाते ॥ ४० ॥
तेजस और कार्मण शरीर प्रतिघात रहित हैं। अर्थात् ये न तो मूर्तीक पदार्थ से स्वयं रुकते हैं और न किसीको रोकते हैं । यद्यपि वैक्रियिक और आहारक शरीर भी प्रतिघात रहित हैं लेकिन सैंजस और कार्मण शरीरकी विशेषता यह है कि उनका लोकपर्यन्त कहीं भी प्रतिघात नहीं होता । वैक्रियिक और आहारक शरीर सर्वत्र अप्रतिघाती नहीं है। इनका क्षेत्र नियत है ।
अनादिसम्बन्धे च ॥ ४१ ॥
तेजस और कार्मण शरीर आत्माके साथ अनादिकाल से सम्बन्ध रखने वाले हैं। च शब्दसे इनका सादि सम्बन्ध भी सूचित होता है क्योंकि पूर्व तेजस कार्मण शरीरके नाश होनेपर उत्तर शरीर की उत्पत्ति होती है। लेकिन इनका आत्माके साथ कभी असम्बन्ध नहीं रहता । अतः सन्ततिकी अपेक्षा अनादिसम्बन्ध है और विशेषकी अपेक्षा सादि सम्बन्ध है ।
सर्वस्य ॥ ४२ ॥
उक्त दोनों शरीर सब संसारी जीवों के होते हैं।