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________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ३३० तत्त्वार्थवृत्ति-हिन्दी-सार इस मतमें सबसे बड़ा दुधाण यह है कि-यदि आत्माके बुद्धि श्रादि विशेष गुण नष्ट हो जाते हैं तो आत्माका स्वरूप ही क्या बचता है ? अपने विशेष लक्षणोंसे रहित वस्तु अवस्तु ही हो जायगी। (३) बौद्ध मानते हैं कि जिस प्रकार वैलके न रहनेसे दीपक बुझ जाता है उसी प्रकार राग-रह के क्षय हो जानेसे आत्मा-ज्ञानसन्तानका शान्त हो जाना मोक्ष है। इनकी यह प्रदीपनिर्वाणकी तरह आत्मनिर्वाणकी कल्पना भी उचित नहीं है। कारण आत्माका अत्यन्त अभाव नहीं हो सकता, वह सत् पदार्थ है। मोक्षके कारणों के विषयमें भी विवाद है न्यायिक आदि ज्ञानको ही मोक्ष कारण मानते हैं इनके मतमें चारित्रका उपयोग तत्वज्ञानकी पूर्णताम होता है। कोई श्रद्धान मात्रसे मोक्षकी प्राप्ति मानते हैं। मीमांसक क्रियाकाण्डरूप चारित्रसे मोक्षकी प्राप्ति स्वीकार करते हैं। किन्तु जिसप्रकार रोगी औषधिके ज्ञानमात्रसे या ज्ञानशून्य है। जिस किसी दबाके पालनेमात्रसे 'अथवा रुचि या विश्वास रहित हो मात्र दबाके ज्ञान या उपयोगमात्रसे नीरोग नहीं हो सकता उसी प्रकार अकेले श्रद्धान, ज्ञान या चारित्रसे भवरोगका विनाश नहीं हो सकता। देखो लंगड़ेको इप्ट देशका ज्ञान है पर क्रिया न होनेसे उसका ज्ञान उसी तरह व्यर्थ है जिसप्रकार अन्धेकी क्रिया ज्ञानशून्य होने से । श्रद्धानरहित व्यक्तिका ज्ञान और चारित्र दोनों ही कार्यकारी नहीं है। अतः श्रद्धान, ज्ञान और चारित्र तीनों मिलकर ही कार्यकारी हैं। मोक्षमार्ग क्या है ? सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ॥ १ ॥ सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र तीनों मिलकर ही मोक्ष का मार्ग है। मोक्षोपयोगी तच्चोंके प्रति दृढ़ विश्वास करना सम्यग्दर्शन है। तत्त्वोंका संशय, विपर्यय और अनिश्चिततासे रहित यथावत् ज्ञान सम्यग्ज्ञान है । संसारको बढ़ानेवाली फियाओंसे विरक्त तत्वज्ञानीका काँका आस्रव करनेवाली क्रियाओंसे विरत होना सम्यक चारित्र है। इस सूत्रमें 'सम्यक् शब्दका सम्बन्ध दर्शन, ज्ञान और चारित्रसे कर लेना चाहिए । सम्यग्दर्शनका स्वरूप तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ॥ २ ॥ पदार्थके अपने स्वरूपको तत्व कहते हैं। तत्त्वार्थ अर्थात् पदार्थों के यथावन स्वरूपकी श्रद्धा या रुचिको सम्यग्दर्शन कहते हैं। ____अर्थ शब्दके प्रयोजन, वाच्य, धन, हेतु, विषय, प्रकार, वस्तु, द्रव्य आदि अनेक अर्थ होते हैं । इनमें पदार्थ अर्थ लेना चाहिए धन आदि नहीं। दर्शन शब्द का प्रसिद्ध अर्थ देखना है, फिर भी दर्शन शब्द जिस 'दृशिर' धातुसे बना है उसके अनेक अर्थ होते हैं, अतः मोक्षमार्गका प्रकरण होनेसे यहाँ देखना अर्थ न लेकर रुचि करना, बढ़ विश्वास करना अर्थ लेना चाहिए। यदि देखना अर्थ किया जायगा
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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