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________________ ४६ तत्वार्थवृत्ति प्रस्तावना मन्ध रखनेवाले परिणमत कारणभूत पर्यायशक्तिके न होने पर न हों। जैसे प्रत्येक पुद्गलपरम शु पिट बन सकता है फिर भी जबतक अमूक परमाणु मिट्टी स्वरूप पर्यायको प्राप्त न होंगे तब तक उनमें मिट्टीरूप पर्यायशक्ति के विकासले होनेवाली पटपर्याय नहीं हो सकती। परन्तु मिट्टी पर्यायसे होनेवाली घट सकोग आदि जितनी पर्यायं सम्भावित है व निमित्त के अनुसार कोई भी हो सकती ई जैसे जीव मनुष्यपर्याय अखिसे देखनेकी योग्यता विकसित है तो वह अमुक समयमें जो भी सामने आयगा उसे देखेगा। यह कदापि नियत नहीं है कि अमुक समयमे अमुक पदार्थको ही देखनेकी उसमें योग्यता है गंषकी नहीं, या अमुक पदार्थ में उस समय उसके द्वारा ही देखे जानेकी योग्यता है। या नहीं। मतलब यह कि परिस्थितिवश जिस पर्यायशक्तिका द्रव्यमें विकास हुआ है उस शक्ति से होने का जिस कार्यकी सामग्री या बलवान् निमित्त मिले उसके अनुसार उसका वैसा परिणमन होता जायगा । एक मनुष्य गद्दीपर बैठा है उस समय उसमें हँसना- रोना, आश्चर्य करना, गम्भीरतामे सोचना आदि अनेक कार्योंकी योग्यता है यदि बहुरूपिया सहमने आजाय और उसकी उसमें पी हो तो हंसरून पर्याय हो जायगी। कोई लोकका निमित्त मिल जाय तो ये भी गड़ता है। अकस्मात् बात सुनकर आश्चर्यमें डूब सकता है और तत्वचर्चा सुनकर गम्भीरतापूर्वक गोभी सकता है मार्गदर्शक यह आचार्य इत्येव्या प्रतिसमयका परिणमन नियत है उसमें कुछ भी हेर-फेर नहीं हो सकता और न कोई हेर-फेर कर सकता है द्रव्य के परिणमनस्वभावको गम्भीरता न सांचने के कारण भ्रमात्मक है । द्रव्ययत परिणमन नियत है। अमुक स्युपगत शक्तियोंक परिणमन भी नियत हो सकते हैं की उस पर्यायद्यक्ति सम्भावनीय परिणयनों से किसी एकरूपमें निमि सकती तानुगार सामने आते हैं। जैसे एक अंगुली अगले समय टेड़ी हो सकती हैं, सीधी रह सकती है, टूट है घूम सकती है. जैसी सामग्री और कारण -कलाप मिलेंगे उसमें विद्यमान इन सभी योग्यताओं से अनुकूल योग्यता विकास हो जागया। उस कारणशक्ति से यह अमुक परिणमन भी नियत कराया आ सकता है जिसकी पूरी सामग्री अविकल हो और प्रतिबन्धक कारणकी सम्भावना न हो, ऐसी अन्तिमक्षणमान शक्तिमे वह कार्य नियत ही होगा, गर इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि प्रत्येक द्रव्यवा प्रतिक्षणका परिचमन सुनिश्चित है उसमें जिसे जो निमित्त होना है नियतित्र पेटमें पड़कर ही वह उसका निमित्त मेगा हो। यह अनिसुनिश्चित है कि हरएक प्राका प्रतिसमय कोई न कोई परिणमन होना चाहिए पूरा सरकारोंके परिणामस्वरूप कुछ ऐसे निश्चित कार्यकारणभाव बनाए जा सकते 1 है दिन यह नियत किया जा सकता है कि अमुक समय इस व्यका ऐगा परिणमन होगा ही, पर इस काफी अवश्यभाविना सामग्री की अविकलता तथा प्रतिवन्धक कारणकन्या पर ही निर्भर है। जैसे हल्दी और चुना दोनों एक में डाले गये तो वह अवश्यंभावी है कि उनका रंगका परिणमन हो । एक बात यहाँ वह शामतीरसे ध्यान में रखने की है कि अवेतन परमाणुओं में बुद्धिपूर्वक किया नहीं हो सकती उनमें अपने संयोगोंके आधार ही किया होती है, भले ही वे संयोग पेतन द्वारा मिलाए गए हों या प्राकृतिक कारणोग मिले हों जंगे पृथिवीमें कोई बीज पड़ा हो तो सरदी गरमीका निमित्त पाकर उनमें अंकुर आ जायगा और पल्लवित पुष्पित होकर पुनः बीजको उत्पन्न कर देगा। गरमीका निमित्त पाकर जन भाप बन जायगा । पुनः सरीका निमित्त पाकर भाग जलके रूपमें बरसकर विमल बना देगा कुछ ऐसे भी अन द्रव्योंके परिणमन हैं जो चेतन निमित्तसे होते है. जैसे मिट्टीका बड़ा बनना या रुईया कपड़ा बनना वा यह कि अतीत के संस्कारवश वर्तमान अपमें जिमनी और जैसी योग्यताएँ विकसित होगी और जिनके विकास के अनुकूल निमित्त मिलेंगे द्रव्योंका वैसा वैसा रगत होता जाएगा कि कोई निमित कार्यक्रम द्रव्यका बना हुआ हो और उसी सुनिश्यित अनन्न यह जगत बगहा से यह पारकर ही पूर्व नियता नियतत्वादर्जन दृष्टिसे भागत शक्तियां नियत है पर उनके प्रतिक्षणके परिणमन अनिवार्य होकर भी अनियत है। एक व्यकी उन समयको गोग्यतासे जितने प्रकार परिणमन हो सकते हैं उनमें कोई भी परिणमन जिसके निमित्त और अनुकूल सामग्री मिल जायगी हो जायगा। तात्पर्य कियह
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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