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________________ प्रस्तावना १.ग्रन्थविभाग [तश्व और तत्त्वाधिगम के उपाय ] आममे २५०५-२६०० वर्ष पूर्व इस मारतभूमिके बिहार प्रदेशमें दो महान् नक्षत्रोंका उदय हुआ था. जिनकी प्रभासे न केवल भारत ही आलोकित हआ था किन्तु सुदूर एशियाके बीन,जापान,तिब्बत आदि देश भी प्रकाशित हुए थे । आज भी विश्वमें जिनके कारण भारतका मस्तकं गर्वोन्नत है, वे निग्गंठनायपुन वर्धमान और शौढोदनि-गौतम युद्ध । इनके उदयके २५० वर्ष पहले तीर्थकर पार्श्वनाथने काशी देशमें जन्म लिया था और श्रमणपरंपरा के पातुर्याम संवरका जगतको उपदेश दिया था। बुद्धने बोधिलाभके पहिले पार्श्वनाथकी परंपराके केशलंच आदि उग्रतपों को तपा था, पर वे इस मार्गमें सफल न हो सके मार्गदर्शक :- आचार्य श्री मचिमिसामनीलाहारसंगठनाथपुत्त साधनोंकी पवित्रता और कठोर आत्मानुशासनके पक्ष पानी थे। वे नग्न रहते थे, किसी भी प्रकारके परिग्रहका संग्रह उन्हें हिंसाका कारण मालूम होता था । मात्र लोकसंग्रहके लिए आवारके नियमोंको मृदु करना उन्हें इष्ट नहीं था। संक्षेपमें बुद्ध मातृहृदय दयाभूमि और निग्गठनाथपुस पितचेतस्क साधनामय संशोधक योगी में । बडके पास जब उनके शिष्य आकर कहते थे--भन्ते, जन्साघर की अनुज्ञा दीजिए, या तीन चीवरकी अनुज्ञा दीजिए ' तो दयालु बुद्ध शिष्यसंग्रह के लिए उनकी सुविधाओंका ध्यान रखकर आचारको मुदु कर उन्हें अनुशा देते थे । महावीरकी जीवनचर्या इननी अनुशासित थी कि उनके संघके शिष्योंके मनमें मह कल्पना ही नहीं आती थी कि आसारके नियमोंको मुटु करानेका प्रस्ताव भी महाबीरमे किया जा सकता है। इस तरह महावीरकी संघपरंपरामें चुने हुए अनुशासित दी तपस्वी थे, जब कि बुद्धका संघ मद् मध्यम सुकूमार सभी प्रकारके भिक्षुओंका संग्राहक था। यद्यपि महावीरकी तपस्याके नियम अत्यंत अहिंसक अनुशासनबद्ध और स्वावलंबी थे फिर भी उस समय उनका संघ काफी बड़ा था। उसकी आचारनिष्ठा दीर्घ तपस्या और अनुशासन की साक्षी पाली साहित्य में पग पग पर मिलती है। महावीर कालमें प्रमुख संघनायकों की चर्चा पिटक साहित्य और आगम साहित्यमें आती है । बौद्धों के पाली ग्रंथों में उनकी जो चर्चा है उस आधारसे उनका वर्गीकरण इस प्रकार कर सकते हैं (१) अजितकेशकम्बलि--भौतिकवादी, उच्छेदवादी। (२) मक्खलिगोशाल....नियतिवादी, संसारद्धिवादी । (2) पूरण कश्यप--अक्रियावादी । (४) प्रक्रुध कात्यायन--शाश्वतार्थवादी, अन्योन्यवादी 1 (५) संजयवेलठिपुत्त—संशयदाची, अनिश्चयवादी या विक्षेपवादी। (६) बुद्ध-अव्याकृतवादी, चतुरार्मसत्यवादी, अभौतिक क्षणिक अनात्मवादी। (9) निग्गठनाथपुस्त--स्याद्वादी, चातुर्याममंवरवादी। (१) अजितकेशकम्बलिका कहना था कि-"दान यज्ञ तथा होम सब कुछ नहीं है। भले बुरे कर्मों का फल नहीं मिलता। न इहलोक है, न परलोक है, न माता है, न पिता है, न अयोनिज ( औपपातिक देव ) सत्व है, और न इहलोक में वैसे ज्ञानी और समर्थश्रमण या साह्मण हैं जो इस लोक और परलोकको स्वयं जानकर और साक्षात्कारकर कहेंगे । मनुष्य पाँच महाभूतोंसे मिलकर बना है। मनुष्य जब मरता है तब पृथ्वी देखो दीवनिकाय मकसनुस ।२ । हिन्दी अनुवाद ।
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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