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________________ १. अनुक्रम २. सम्पादकीय ३. प्रस्तावमा तरम और तवाभिगम के उपाय मक्खल गोशालका मत पूरण कश्यप का मत कात्यायनका मन संजय बेट्टित्तका मत वृद्धमत निग्मन्यनाचपुत तत्वनिरूपण सरथ आदिकी व्याख्या आत्मा का स्वरूप आत्मदृष्टि ही बन्पोच्छेदिका आत्माके तीन प्रकार बन्धका स्वरूप चहेतु आव कषाय आसव के दो भेद मोक्षतत्त्वनिरूपण मोजके कारण संबर मोक्ष के साधन सम्यग्दनका सम्यग्दर्शन अनुक्रम ७८ ९-१०२ ९-१० १० शास्त्रका सम्यग्दर्शन तस्याधिगम के उपाय मार्गदर्शक बुद्धका दृष्टिकोण नियम्यनाथ जीव महावीर १५१६ १६ जीवको अनादिवद्ध माननेका कारण १७-२० | १० १० ११ १२ १२-१४ । १४ | १४ । १५ । २०-२१ २१-२४ २४ २५ २६ | २७ २८-३० | ३१ ३२-३४ ३२ | ३४ । 1 ३५-३९ ! निक्षेप प्रमाण, नय और स्वाद नयनरूपण ● स्वाहाद प्रो० बलदेव उपाध्यायके मत की समीक्षा आचार्य श्री सविधिसागर जी महाराज ६९-७१ डा० देवराज मतकी आलोचना ७१ महापण्डित राहुल सांकृत्यायन के मतका विचार बुद्ध और संजय सप्तभंगी श्री सम्पूर्णानन्दके पती समालोचना अनेकान्त दर्शनका कर्ण और भूगोल वैदिक परम्परा योगदर्शन ७८-८३ सांस्कृतिक आभार डॉ० सर राधाकृष्णनके मनकी समीक्षा] ८०-८१ सदावि अनुयोग ८२ ८४-८६ ग्रन्थका वाह्य स्वरूप ८६-१३ व्यासभाध्यके आधार से वैदिक परम्परा श्रीमद्भागवत के ६२-६४ ૪ ६५-६७ ६७ प्रस्तुत वृत्ति भाषा और ऐली प्रन्थकार बुतावरमूरि ४- विषयसूची ५- मूलग्रन्थ ६-या लिहिन्दीसार ७वार्थसूणामकारादिका: ९८-९९ ९९-१०० १०३-१०८ १-३२५ ३२७-५११ ५१३-५१० ३९-४१ ८-तस्यार्थसूत्रस्यानामहारानुमः ५१८-५३१ ४१-४४९ तस्यार्थवृत्ती समासानामुतवाक्यानाम परम्पराका सम्यग्दर्शन प्राचीन नवीन या समीचीन संस्कृतिका सम्यग्दर्शनअध्यात्म और नियतिवादका सम्यग्दर्शन ४४-५४ निश्वय और व्यवहारका सम्यग्दर्शन ५४-५७ १०-तत्वार्थवृत्तिगताः केचिद् विशिष्ट: कारानुक्रमः परदोकका सम्यग्दर्शन सम्यग्दर्शन ७१-७२ ७२-७६ ७६-७७ ७७ आधार से ९०-५२ परम्पराज के आधार ९२-९३ ९३-९७ ९७ ८८-९० ५७-५९ शब्दाः ५९-६२ ११-तत्वार्थवृत्तिगता ग्रन्था ग्रन्थकाराच ६२-६३ १२- विवरण ६३ ५२२.५२० ५३८ ४६ *૩ ५४८
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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